पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४३८

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2 - 3 १२ वृहदारण्यकोपनिषद् स० अपान में, शाकल्य ने पूछा अपान किसमें स्थित है? याज्ञवल्क्य ने कहा व्यान में, फिर शालय में प्रश्न किया ध्यान फिस में स्थित है, इस पर यातयन्मय ने वादा उदान में, फिर शाकल्य ने पूछा उदान किस में स्थित है ? यालयलय ने कहा समान में, परन्तु हे शाकल्य ! श्रागा जिसमें सब स्थित हैं और जो वेद में "नेति नेति' करके कहा गया है वही यह यात्मा अमाहा है, क्योंकि वह ग्रहण नहीं किया जा सकता है, वही तयरहित ई क्योंकि वह दाग नहीं किया जा सक्ता है, वह संगरहित है क्योंकि वह 'संग नहीं किया जा सक्ता है, वह बन्धनरहित है क्योंकि घर पीड़ित नहीं हो सकता है, और न नष्ट हो सकता है. ६ शाकल्प ! सुनो जो आठ स्थान पृथ्वी श्रादि हैं. पाट लोक अग्नि श्रादि हैं श्राठ देव अमृत अादि है, पाट पुरुष शरीर आदि हैं जो कोई उन पुरुपों को जानकर और अन्तःकारण में रख कर उत्क्रमण करता है, यानी शरीर को त्यागता है तुम उम उपनिषद्तत्त्ववित्पुरुष को जानते हो मैं तुमसे प्रश्न करता हूं अगर तुम उसको मुझस नही कहोगे, तो तुम्हारा मस्तक सभा में गिर जायगा, शाकल्प उस पुरुष को नहीं जानता भया इसलिये उसका मस्तक सबके सामने गिर पड़ा, और चोरों ने उसके दाह के निमित्त उसको लजाते हुये शरीर को देख कर और उसको और कुछ समझ कर उस शरीर को लेकर भाग गये ॥ २६ ॥ मन्त्रः २७ अथ होवाच ब्राह्मणा भगवन्तो यो वः कामयते स