पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४३९

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अध्याय ३: ब्राह्मण ६. ४२५ मा पृच्छतु सर्वे वा मा पृच्छत यो वः कामयते तं व: पृच्छामि सर्वान्वा वः पृच्छामीति ते ह ब्राह्मणो न दधृपुः॥ पदच्छेदः। अथ, ह, उवाच, ब्राह्मणाः, भगवन्तः, यः, वः, कामयते; सः, मा, पृच्छतु, सर्वे, वा, मा, पृच्छत, यः, वः, कामयते, तम्, वः, पृच्छामि, सर्वान् , वा, वः, पृच्छामि, इति, ते, ह, ब्राह्मणाः, त, दधृपुः ।। अन्वय-पदार्थ। नथ ह-तत्पश्चात् । उवाच याज्ञवल्क्य बोले कि । भगवन्तः ब्राह्मणाः हे पूज्य ब्राह्मणो।वश्रापलोगों में.। या जो कोई। कामयते-चाहता है.। सःवह । मान्मुझसे । पृच्छतु-प्रश्न करे । वा-या। सर्व-सब कोई मिलकर । मान्मुझसे । पृच्छत- 'प्रश्न करें।+ अथवान्या । वःआपलोगों में । यः जो कोई । कामयते-चाहता हो । तम्-उससे । पृच्छामि-मैं प्रश्न करूं । वा-या। वः श्राप । सर्वान्-सव जनों से। पृच्छामि मैं प्रश्न कर। इति इस पर । ते-उन । ब्राह्मणाः=ब्राह्मणा ने । न-नहीं। दधृपुः-पूछने का साहस किया। भावार्थ । तत्पश्चात् याज्ञवल्क्य ने ब्राह्मणों को सम्बोधन करके कहा कि, हे पूज्य ब्राह्मणो! आपलोगों में से जो कोई अकेला प्रश्न करना चाहता है, वह अकेला प्रश्न करे, या आप सबलोग मिलकर मुझ से प्रश्न करें या आपलोगो में से जो अकेला चाहता है उस अकेले से मैं प्रश्न करूं, या आप सब लोगों से मैं प्रश्न करूं, मैं हर तरह से प्रश्नोत्तर करने i ,