पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४६२

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A ४४८ बृहदारण्यकोपनिपद् स०

  • आह-कहा। सम्राट हे जनक!। एतत्-यह ब्रह्मा की उपासना।

वै-नित्संदेह । एकपात्-एक चरणवाली है । इति इस पर । +जनका जनक ने। श्राह-कहा। याज्ञवल्क्य हे याज्ञवस्क्य!। .सा-प्रसिद्ध । + त्वम्याप । नः हमसे । +तत्-उस ब्रह्म को। ब्रहि-उपदेश करो । + याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने । श्राह- कहा कि । चक्षुः:चक्षु इन्द्रिय का । एव-निश्चय करके । आयतनम्-चक्षु इन्द्रिय गोलक पायतन है। आकाश और ब्रह्म । प्रतिष्ठान्प्रतिष्ठा है। इति इस प्रकार । एनत्-इस चक्षु ब्रह्म को। सत्यम् सत्य । + मत्वा मानकर । उपासीत-उपा- सना करे ।+जनका जनक+आठ-बोले कि । याज्ञवल्क्य% हे याज्ञवल्क्य ! | सत्यता-सत्य । का क्या है। याज्ञवल्क्य= याज्ञवल्क्य ने । उवाचकहा । सम्राट हे जनक !! चक्षुः नेत्र । एव=ही। + सत्यम् सत्य है । + हि-क्योंकि । सम्राट हे जनक !। चक्षुपान्नेत्र करके ही । पश्यन्तम्-देखनेवाले पुरुष 'से। आहुः लोग पूछते हैं कि ! + किम्-क्या । + त्वम् तुमने । 'अद्राक्षी देखा है। इति इस पर । सःवह द्रष्टा । श्राह कहता है कि हां । + अहम्=मैंने। अद्राक्षम् देखा है। इति तव ही । तत्-उसका कथन । सत्यम्-सच । भवंति-समझा जाता है। सम्राट हे राजन् !। य:जो। विद्वान् विद्वान् । एवम् 'इस प्रकार । एतत्त्-इस ब्रह्म की। उपास्ते-उपासना करता है कि । चक्ष नेत्र ही। परमम्=परम । ब्रह्मन्ब्रह्म है। एनम् उस ब्रह्मवेत्ता को । चक्षुः=नेत्र। न=नहीं । जहाति-त्यागतां है। एनम् इस 'ब्रह्मवेत्ता को । सर्वाणि-संब । भूतानि-प्राणी । अभिक्षरन्ति-रक्षा करते हैं ।च-और । सः-वह। देवा देवता 1 + भूत्वा दोकर ।' देवान्-देवताओं को। अप्येतिप्राप्त होता है । इति ऐसा । श्रुत्वा सुन कर।