अध्याय ४ ब्राह्मण २ ४७१ होती है। एपा-यह । अस्य उम पुरुष की । विराट-विराट नामक । पत्नी-सी है। *च और । यःम्जो। एषःच्यह । श्रन्तहदये हृदय के भीतर । श्राकाश नाकाश है । एप:- सोई । तयोः उन दोनों शी पुरुप के । संस्ताव-मिलाप की अगह है। यःजो। एप:-यह । अन्तहदये हृदय के भीतर । लोहितपिएड:
- -लाल मांसपिण्ड है। एतत्-यही । एनयोः
इन दोनों का। अन्नम् अन्न है । श्रथ और । यत्-जो । एतत्-यह । अन्तहदये हृदय के भीतर | जालकम् इव% साल की तरह चादर । एतत्-यही । एनयोः उनका । प्रावरणम् -धोना है। + च-और । याम्यो। एपा-यह । हृदयात्म्हदय से । ऊर्जा ऊपर । नाडी-नादी । उच्चरति जाती है। एपायही । श्रनयोः इन दोनों के। संचरणी- गमन का। मुनिः मार्ग है। यथा-जैसे। केशा एक केश । सहन्नधा-पहन । भिन्नाटुकड़ा किया हुप्रा । + सूरुमः-प्रति मूक्ष्म ! + भवति होता है । एवम्-इसी तरह । अस्य-इस देह की। हिताः नाम-हित नामवाली। नाड्या अतिसूक्ष्म ना- दियां हैं । अन्तर्ह दये हृदय के भीतर । प्रतिष्टिता:स्थित । भवन्ति । चनिश्चय करके । एताभिाइन नाड़ियों द्वारा ! पतत्-यह अन्नरस । श्रास्त्ररत्माता हुश्रा । श्रास्त्रवतिम्सव अगह पहुंचना है । तस्मात् इसी कारण । एपः यह जीवात्मा । अस्मात्-इस । शारीरात्-शारीरी । श्रात्मनःश्रात्मा से अर्थात् स्थूल देह की अपेक्षा । प्रविधिक्ताहारतरः अति शुद्ध प्राहारवाला । इव एव-निस्सन्देह । भवति होता है। भावार्थ। इसके उपरान्त यह पुरुषाकार व्यक्ति जो वायें नेत्र में प्रतीत होती है यह उस पुरुप की विराट् नामक स्त्री है,