अध्यायं ४ ब्राह्मण ३ ५२६ पितृणाम् पितरों का । एका-एक । आनन्द प्रानन्द है। अथ-और । जितलोकानाम्-लोकविजयी । पितृणाम् पितरों का । येन्जो । शतम्-सौगुना । आनन्दा आनन्द है । सः वह । गन्धर्वलोके गन्धर्वलोक में । एकाएक । आनन्द:: श्रानन्द के बराबर है। अथ-और । ये-मो । शतम् सौगुना । आनन्दान्धानन्द । गन्धर्वलोके गन्धर्वलोक में । + अस्ति= है। साम्बह । कर्मदेवानाम् कर्मदेवता का । एकाएक । अानन्दः अानन्द है । ये जो । कर्मणा-यज्ञ करके । देवत्वम्- देवपद को। अभिसंपद्यन्ते प्राप्त होते हैं । ते वे । कर्मदेवाः कर्मदेव हैं । श्रथ और । ये-जो । शतम् सौगुना । आनन्दः मानन्द । कर्मदेवानाम् कर्मदेवों का है। सा-वह । श्राजान- देवानाम् जन्म देवताओं का । एक अानन्दः एक आनन्द है । चम्बार । अवृजिन:-वैदिक कर्मों के अनुष्ठान से पापरहित हुश्रा । च-और । अकामहता-कामनारहित होता हुआ । श्रोत्रिया-जो वेद का पढ़नेवाला है । तस्य-उसका । एकः= एक । आनन्द: प्रानन्द । श्राजानदेवानाम् अन्मदेवताओं के। आनन्दः प्रानन्द के बराबर है। अथ और । ये-जो । शतम् = सौगुना । आजानदेवानाम्-जन्मदेवों का । आनन्दायानन्द है । सः वह । प्रजापतिलोके-प्रजापतिलोक में । एकाएक । आनन्दः प्रानन्द के बराबर है । च-और । यः चन्जो। श्रोत्रियः वेद के पढ़नेवाले । अवृजिन:पापरहित । अका- महत कामनारहितों के । आनन्दा आनन्द हैं। अथ-और। ये-ओ । शतम् सौगुना । प्रजापतिलोके-प्रजापति लोक में । श्रानन्दाः-प्रानन्द हैं । साम्वह । ब्रह्मलोकेब्रह्मलोक में। एका एक । श्रानन्दः प्रानन्द के बराबर है। च-और । यः- ओ । श्रोत्रियः वेद को पढ़ा है । अचूंजिना पापरहित है। ।
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