अध्याय ४ ब्राह्मण ४ का स्वाद नहीं लेता है। + यदा-जद । एकीभवति वागन्द्रिय घारमा के साथ एक होती है । + तदा-तव । इति ऐसा । पाहुः कहते हैं कि । सःवह । न वदति नहीं बोलता है। + यदा-जब । एकीभवति-प्रोत्रेन्द्रिय पात्मा के साथ एक होती है। + तदा तय । इति ऐसा । आहुः लोग कहते हैं कि । सः वह । न शुणोति नहीं सुनता है । + यदा-जब । एकीभवति-मन प्रात्मा के साथ एक होता है । + तदा तव । इति-ऐसा । आहुःलोग कहते हैं कि + साम्यह । न-नहीं। मनुते-मनन करता है । + यदा-जब । एकीभवति-स्वगिन्द्रिय लिलात्मा के साथ एक होता है । + तदा तब । इति-ऐसा । बाहुः लोग कहते हैं कि । सः वह । न-नहीं । स्पृशति- स्पर्श करता है। + यदा-जव । एकीभवतिम्बुद्धि श्रात्मा के साथ एकभाव को प्राप्त होती है । + तदा-तब । इति-ऐसा । बाहुः लोग कहते हैं कि । + स:वह । न-नहीं । विजानाति- जानता है । हम्तव । तस्य-उस । एतस्य-इस प्रात्मा के । हृदयस्यम्-हृदय का । अग्नम् अग्रभाग । प्रद्योतते- करने लगता है। तेनउसी। प्रद्योतनेन हृदयाघ्र प्रकाश करके । + निष्क्रममाण-निकलता हुधा । एपम्पह । आत्मा अन्तरात्मा । चतुष्टः नेत्र से । वाया। मून:-मस्तक से । वाम्या । अन्येभ्यः शरीरदेशेभ्यः-और इन्द्रियों की राह से। निप्कामति=निकलता है । उकामन्तम्-निकलते हुये । तम्- टस जीवात्मा के । अनु-पीछे । प्राण प्राण । उत्क्रामति- ऊपर जाता है यानी निकलने लगता है । अनूत्क्रामन्तम्- जीवात्मा के पीछे जानेवाले । प्राणम्-प्राण के । अनु-पीछे । सर्व-सव । प्राणाम्बागादि इन्द्रियां । उत्क्रामन्ति-ऊपर को जाती है। तदा-तब यानी जाते समय। अयम्-यह जीवात्मा। प्रकाश
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