अध्याय ५ ब्राह्मण २ ६०७ ब्रवीतु-देव । इति-ऐसा । श्रुत्वा-सुन कर । इति इस प्रकार । तेभ्यः-देवों के निमिन । एतत्-इस । दद । अक्षरम् अक्षर को । हस्पष्ट । उवाच-प्रजापति कहता भया।+ चम्योर । + पुनः फिर । इति-ऐसा । + उक्त्वा-कहकर । + पप्रच्छ- पूछता भया कि । यूयम्-तुम लोगों ने । व्यज्ञासिष्टाः-इसका अर्थ आन लिया। इति-ऐसा सुनकर । + देवा:-देवतों ने । ऊचुः कहा कि । व्यशासिष्म इति-हम लोग ऐसा समझ गये किं । दाम्यत इन्द्रियों को दमन करो। इति ना ऐसा हमसे । आत्थ-पाप कहते हैं । इति-ऐसा । + श्रुत्वा-सुनकर । +प्रजापतिः प्रजापति । उवाच-छोले । ठीक । व्यज्ञा- सिट-तुम सव समझे। भावार्थ । प्रजापति के तीन पुत्र देवता, मनुष्य और असुर हैं, तीनों प्रजापति के पास ब्रह्मचर्य व्रत के निमित्त वास करते रहे, इनमें से प्रथम देवता प्रजापति के पास जाकर बोले कि हे भगवन् ! आप हम लोगों को कुछ उपदेश देवें, प्रजापति ने उनको "द" अक्षर का उपदेश दिया, और फिर उनसे कि क्या तुम लोगों ने "द" इस अक्षर का अर्थ समझ लिया है ? देवताओं ने कहा हां हमलोग समझ गये हैं, आप हमसे कहते हैं कि तुम सब लोग इन्द्रियों का दमन किया करो, इस पर प्रजापति बोले कि हां तुम लोगों ने इस "" अक्षर का अर्थ ठीक समझ लिया है, इसका भाव ऐसा ही है जैसा तुम लोगों ने समझा है ॥ १ ॥ मन्त्रः २ अथ हैनं मनुष्या ऊचुर्ब्रवीतु नो भवानिति तेभ्यो
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