६१० वृहदारण्यकोपनिषद् स० अन्वय-पदार्थ। अथ ह मनुष्य गण के पीछे । एनम् प्रजापति से । श्रपुरा: दैत्य लोग । इति-ऐसा। ऊचुः गोलने मये कि । नःहमारे लिये भी । भवान् हे भगवन् ! पाप । + अनुशासनम् = उपदेश । ब्रवीतु-देवे । इतिऐमा | + श्रुट्या-मुन कर । द-द । इति=ऐसे । एतत् एवम्म । अक्षरम एक अपर को । तेभ्यः असुरों के लिये भी । उवाच-प्रजापति कहना भया । + च और 1 + पुनः=फिर । इति-ऐमा । पप्रच्छ% पूछता भया कि । व्यशासिष्टाःग्या नुम मर समझ गये । इति इस पर । ऊचुः इतिग्रसुर ऐसा बोन्ने कि।न:म से। आत्थ-पाप कहते हैं कि । दयध्वम् दया करी । प्रतिमा। व्यज्ञासिम हम लोग समझे हैं । + प्रजापतिः प्रजापनि । इति-तय । उवाच हबोले कि । व्यमासिष्टम मय टोक समझ गये हो । तदेव-वही । एतत् प६ प्रजापनि का अनु- शासन है । तत्-इसी को । पपा-या। देवी-देवसम्मन्धी । स्तनयित्नु: मेघस्थ । वाक्-वाणी। दददददद शब्द । इति- करके । अनुवदति-अनुवाद करती है यानी । दाम्यत-इन्द्रियों को दमन करो । दत्त दान करो । दयध्वम् दया करो । इति इस प्रकार । एतत् यह । प्रयम् तीन प्रकार का मनु- शासन है। + अतः इसलिये । + मनुप्यमानम्-मगुप्यमान । दमम्-इन्द्रियदमन । दानम्-दान । दयाम्या को। शिक्षेत्-सीखे यानी करे। भावार्थ । मनुष्यगण के पीछे असुरगण भी प्रजापति के पास गये और उनसे इच्छा प्रकट की कि आप हम लोगों को यथा-
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