अध्याय ५ ब्राह्मण ३ ६११ उचित उपदेश करें, उनको भी प्रजापति ने "द" अक्षर का उपदेश किया और फिर उनसे पूछा कि क्या तुम समझे हो, असुरों ने कहा हे भगवन् ! आपने कहा है कि तुम सब लोग सब जीवों पर दया किया करो, प्रजापति ने कहा हां तुमने हमारे अर्थ को ठोक समझ लिया है, संसार में जाकर ऐसाही किया करो, इसी उपदेश को दैवी मेघस्थ वाणी भी अनुवादित करती है, यानी जो मेघ में गर्जना ददद की होती है, वह भी तीन दकारों के भाव को बताती है यानी इन्द्रियदमन करो, दान दो और दया करो, आज कल भी सबको उचित है कि इन तीनों शिक्षा को, यानी इन्द्रिय- दमन, दान, और दया को भलोप्रकार स्वीकार करें ॥ ३ ॥ इति द्वितीयं ब्राह्मणम् ॥ २ ॥ अथ तृतीयं ब्राह्मणम् । मन्त्रः १ एप प्रजापतिर्यद्धृदयमेतद्ब्रह्मैतत्सर्वं तदेतत्यक्षर हृदयमिति ह इत्येकमक्षरमभिहरन्त्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद द इत्येकमतरं ददत्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद यमित्येकमक्षरमेति स्वर्ग लोक य एवं वेद ।। इति तृतीयं ब्राह्मणम् ।। ३॥ पदच्छेदः। एषः, प्रजापतिः, यत् । हृदयम्, एतत् , ब्रह्म, एतत् ,
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