पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६३

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अध्याय.१ ब्राह्मण ३ वेद ॥ पदच्छेदः। अथ, मनः, अति, अवहत् , तत्, यदा, मृत्युम्, अति, अमुच्यत, सः, चन्द्रमा, अभवत्, सः, असौ, चन्द्रः, परेण, मृत्युम्, अतिक्रान्तः, भाति, एवम् , ह, वा, एनम् , एषा, देवता, मृत्युम् , अति, वहति, यः, एवम् , अन्वय-पदार्थ । अथ-इसके पीछे । ह-निश्चय करके । प्राणःबह प्राणदेव । मनः मन को। मृत्युम् मृत्यु से ! अत्यवहत्-दूर ले गया। यदा-जन । तत्-वह मनदेव ! मृत्युम्-मृत्यु से। श्रत्यमुच्यता छूट गया । + तदा तब । साम्बह मन । चन्द्रमामचन्द्रमा । अभवत् होता भया । सः बहो । असौ यह । चन्द्रः चन्द्रमा। मृत्युम्न्मृत्यु से। परेण-परे। अतिक्रान्तः अतिक्रमण करके । भाति-प्रकाशित होता है । यो । एवम्-इस प्रकार । वेद- जानता है । एनम्-उस विज्ञानी को । एषा यह । देवताप्राण देवता । एवम् ह वा-उसी प्रकार ।. मृत्युम्-मृत्यु के । अति- वहति पार पहुंचाता है। भावार्थ। हे सौम्य ! इसके पीछे वह प्राणदेव मन को मृत्यु से दूर ले गया, और जब वह मनदेव मृत्यु से छूट गया तब वही मन चन्द्रमा हो गया, वही यह चन्द्रमा मृत्यु के परे मृत्यु को अतिक्रमण करके प्रकाशित हो रहा है, जो उपासक इस प्रकार जानता है, उसको यह प्राणदेव मृत्यु के पार वैसाही पहुँचा देता है, जैसे उसने मनादिकों को मृत्यु के पार पहुंचा दिया है ॥ १६ ॥ .