पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६७१

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अध्याय ५ ब्राह्मण १४ ६५७ . . . . पदच्छेदः। तस्याः, उपस्थानम्, गायत्रि, असि, एकपदी, द्विपदी, त्रिपदी, चतुष्पदी, अपत्, असि, न, हि, पद्यसे, नमः, ते, तुरीयाय, दर्शताय, पदाय, परोरजसे, असौ, अदः, मा, प्रापत् , इति, यम् , द्विष्यात्, असौं, अस्मै, कामः, मा, समृद्धी, इति, वा, न, ह, एव, अस्मै, सः, कामः, समृध्यते, यस्मै, एवम् , उपतिष्ठते, अहम् , श्रदः, प्रापम् , इति, वा ।। अन्वय-पदार्थ। तस्याःइस गायत्री का। उपस्थानम्-उपस्थान यानो प्रशंसा । इति ऐसी+अथ-प्रय । + कथ्यते कही आती है। गायत्रि हे गायन्नि ! । एकपदी-त्रैलोक्यरूप एक चरणवाली। अलि-तू है यानी तीनों लोक तेरा प्रथमपाद है । द्विपदी- विद्यारूप द्वितीय चरणवाली । + असि-तू है यानी तीनों वेद तेरा द्वितीय चरण है । त्रिपदी-प्राणादिरूप तीन चरणवाली। + असि-तू है यानी प्राणीमात्र तेरा तृतीयचरण है ।चतुष्पदी दर्शतरूप चौथे चरणवाली । + असि-तू है यानी सबका प्रका- शक तेरा चतुर्थ चरण है । + यद्यपि + एवम् + असिम्यद्यपि त् ऐसी है । + परन्तु-परन्तु । अपद्-वास्तव में तू पदरहित । + असि है। + हि क्योंकि । त्वम् न-तू नहीं। पद्यसे किसी करके जानी जाती है यानी तेरा ज्ञान किसी को नहीं होता है। ते-तेरे । तुरीयाय-चौथे । परोरजसे-प्रकाशमान । दर्श- ताय दर्शत नामवाले । पदाय-पाद के लिये । नमः नमस्कार । अस्तु हो । + यःजो। असौ यह मेरा । पाप्मा पापिष्ठ शत्रु है। + अस्य-ठसका। + अद: अभिलापा । समृद्धि इति न पूर्णता को न प्राप्त होवे । वाइस कारण | अस्मै उस पापी.की। सःवह । कामः-कामना । ह एव न-किसी ४२