- ६६२ वृहदारण्यकोपनिषद् स० अन्वय-पदार्थ। + श्रादित्यप्रार्थना-सूर्य की प्रार्थना है । हिरगमयेन सोने की तरह प्रकाशमान । पात्रण-पान करके । सत्यस्य-तुझ सस्य का । मुखम् द्वार । अपिहितम् -ढका है। पृपन हे न्यं !। तत्-उस ढकन की । त्वम्-तू । सत्यधर्माय दर्शनाय मुझ सत्यधर्मावलम्बी के दर्शन के लिये । अपावृणु-सादे । पूपन्दे पोपणकर्ता सूर्य!। एक-हे यकेला चलनेवाला!। यम-हे जगन् नियन्ता ! । सूर्य हे आकाशचारी ! । प्राजापत्य प्रजापति के पुत्र ! । रश्मीन्-अपने किरणों को। न्यूह-हटा ले तिजः- अपने तेज को। समूह-कम करले ताकि । यत्-जो। ते-तेरा। कल्याणतमम्-अत्यन्त कल्याण । रूपम्-रूप है। तत्-उम । ते-तेरै + रूपम्-रूप को। पश्यामि मैं देव । असो-बह तेरे बिपे । यःजो । पुरुषा-पुरुप है। असोसोई । सः वह पुरुप । अहम्-मैं । अस्मि-ह। अमृतम्-मुक सत्यधर्मा- वलम्पी का । वायुःप्राणवायु । अनिलम्पायवायु को। प्रतिगच्छतु-मिले यानी प्राप्त होवे । श्रथ-शोर । इदम्या भस्मान्तम्-दग्ध । शरीरम् मेरा देह । पृथ्वीम्-पृथ्वी को। + गच्छतु-प्राप्त होवे । ॐ ॐकार ! । कतो तो, हे मन ! । कृतम्-अपने किये हुये कर्म को । स्मर-पाद कर । स्मर-याद कर । क्रतो हे कतो! । कृतम् सपने किये हुये कर्म को । स्मर-याद कर । स्मर-याद कर । अग्नेह सग्नि- देव ! । अस्मान्-हम लोगों को । राये कर्मफल भोगाई। सुपथा-पच्छे रास्ते से । नय-जे चल । + हिम्क्योंकि । देव- हे अग्निदेव ! । विश्वानि वयुनानिम्सब कर्म को । विद्वान्- तू जाननेवाला है यानी साक्षी है। अस्मत्-हम से । जुहराणम् कुटिल । एना=पाप को। युयोधि अपनय-अलग करदे । ते-तेरें। भूयिष्ठाम् बहुत सा। नमउक्लिम् नमस्कार। विधेम हम करते हैं।
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६७६
दिखावट