अध्याय ५ .ब्राह्मण-१५ . भावार्थ। कोई सूर्य और अग्नि का उपासक सूर्य और अग्नि की प्रार्थना नीचे लिखे प्रकार करता है, हे सूर्य, भगवन् ! सोने की तरह प्रकाशमान पात्र करके तुम सत्य का द्वार ढका हुआ है, हे भगवन् ! उस ढक्कन को तू मुझ सत्यधर्मावलम्बी के लिये हटा दे, हे नगत् का पालन पोषण कर्ता सूर्य, हे अकेला चलनेवाला, हे जगनियन्ता, हे प्रजापति के पुत्र ! तू अपने किरणों को हटाले, अथवा अपने तेज कों कम करदे ताकि मैं तेरे अत्यन्त कल्याणरूप को देखू, हे भगवन् ! जो पुरुष तेरे बिष दिखाई देता है सोई मैं हूं, जब मैं तेरे विप स्थित पुरुष को प्राप्त हो जाऊं तब मुझ सत्यधर्मावलम्बीका प्राणवायु समष्टि बाह्य वायु को प्राप्त होये, और यह मेरा देह दग्ध होकर पृथिवी को प्राप्त होवे, हे प्रकार, हे क्रतो, हे मन ! अपने किये हुये कर्मों को याद कर, हे मन! अपने किये हुए कर्मों को याद कर, हे अग्नि देवता ! हम लोगों को कर्मफल भोगार्थ अच्छे रास्ते से ले चल, हे अग्नि देवता ! तू हमारे सब कर्मों को जानता है, यानी उनका साक्षी है, हमारे कुटिल पापों को दूर कर दे, हम तेरे लिये बहुतसा नमस्कार करते हैं ॥१॥ इति पञ्चदशं ब्राह्मणम् ॥ १५ ॥ इति श्रीवृहदारण्यकोपनिषदि भाषानुवादे पञ्चमोऽध्यायः ॥५॥ 7 !
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