बृहदारण्यकोपनिषद् स० + तदातय । + सावह राजा । तम्मको । उदीक्ष्य देखकर । कुमाराहे कुमार ! । इति-मा । श्रभ्युवाद- कहता भया । + र्धार । साबह श्यनरेनु । भोः भगान। इति-ऐसा सम्योधन करके । प्रतिशुधाव-ना दिया । इनि% तिस पर | +प्रवाहणःप्रवाहप रामा उवाच-पदना भगा । + नुज्या। पित्रान्त पिता करके । अनुशिष्टः अन्यसि शिक्षित किया गया है ? । ह-तब । श्वननुः गगन ने। इति-ऐसा सुनकर । उवाच-उत्तर दिया कि हां। भावार्थ। हे सौम्य 1 किसी समय आरुणि का पुत्र स्नानु पनाल- देश के विद्वानों की सभा में जाना भया घऔर उस सभा को जीतकर वह जैवलि के पुत्र राजा प्रवाह गा पास भी गया जो अनेक मेव को करके संबित होरहा था, राजकुमारने वत- केतु को एक तुच्छ दृष्टि से देखकर म्बोधन किया, घर लड़के ! इसके जवाब में श्वेतकेतु ने कहा है भगवन् ! इस पर राजा प्रवाहण ने पूछा हे श्वेतकेतु ! क्या तू पिता करके मुशिक्षित हुया है ? उसने उत्तर दिया हां हुआ हूं लिया। मन्त्रः वेत्थ यथेमाः मजाः प्रयत्यो विप्रतिपद्यन्ता ३ इति नेति नेति होवाच त्यो यथेमं लोकं पुनरापद्यन्ता इति नेति हैवोवाच वेत्थो यथाऽसौ लोक एवं बहुभिः पुनः पुनः प्रयद्भिर्न संपूर्यता ३ इति नेति हैबोवाच वेत्थोय- यामाहुत्याछ हुतायामापः पुरुषवाचो भूत्वा. समु- वदन्ती ३ इति नेति हेचोवाच वेत्थो देवयानस्य वा -
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