पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७२

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- बृहदारण्यकोपनि पद् सक है.कि कैसे वाणी सामवेद हो सकती है, इसका उत्तर यह है कि सा स्त्रीलिंगमात्र और अमः पुल्लिंगमात्र ये दोनों मिलकर मुख्य प्राण कहे जाते हैं, यानी स्त्रीजाति और पुरु प्रजाति भर में प्राण समानरूप से स्थित है, और जिन कारगा यह प्राण छोटे कीट के शरीर के अंदर होने में वोट के बराबर श्रीर मच्छर के शरीर के अंदर होने से मच्छर के शरीर के बराबर, हाथी के शरीर के अंदर होने से हाथी के शरीर के बराबर और तीनों लोकों के अन्दर रहने से तीनों लोकों के बराबर समझा जाता है इसी कारण वह प्रागण सब छोटे बड़े शरीरों के तुल्य समझा जाना है, और इन्हीं सबके बराबर साम भी है, क्योंकि साम और प्राण एक ही है, जो उपासक इस साम की इस प्रकार उपासना करता है यह साम के सायुज्यता को और सालोकता को प्राप्त होता है।॥ २२ ॥ मन्त्रः २३ एप उ वा उद्गीथः प्राणो वा उत्मारणेन हीदछ सर्व- मुत्तब्धं वागेव गीथोच्च गीथा चेति स उद्गीथः ॥ पदच्छेदः। एषः, उ, बा, उद्गीथः, प्राणः, बा, उत्, प्राणेन, हि, इदम् , सर्वम् , उत्तब्धम् , वाक्, एव, गीथा, उत् , च, गीया, च, इति, सः, उद्गीथः ।। अन्वय-पदार्थ । उम्और । एपा यही । वा मुख्य प्राण । उद्गीथःउद्गीथ भी है। च-चौर । वै-निश्चय करके । उत् =उत् शब्द का अर्थ । प्राण प्राण है। हि-क्योंकि । प्राणेन-प्राण करके ही । इदम् 1