अध्याय १ ब्राह्मण ३ ५७ यह । सर्वम्-सब वस्तु । उत्तब्धम् अथित है। च-ौर । वाक् एवम्वाणी ही । गीथा-गीथा है यानी गीथा शब्द का अर्थ वाणी है । उत्+गीथा इति-यह दोनों मिला करके । सम्वह उद्गीथः उद्गीथ शब्द होता है। भावार्थ। हे सौम्य ! यही प्राण उद्गीथ भी है, उद्गीथ दो शब्द यानी उत् और गीथ करके बना है, उत् शब्द का अर्थ प्राण है, और गीय शब्द का अर्थ वाणी है, प्राण ही करके वाणी बोली जाती है, और प्राणही करके यावत् वस्तु संसार में हैं, सब अथित है इसलिये प्राण और वाणी दोनों मिलकर उद्गीथ कहलाता है, इसी उद्गीथ की सहायता करके उद्गाता यजमान अभीष्ट फल को प्राप्त होता है॥ २३ ॥ मन्त्रः २४ तद्धापि ब्रह्मदत्तश्चैकितायनेयो राजानं भक्षयनुवा- चायं त्यस्य राजा मूर्धानम् विपातयाद्यदितोऽयास्य आङ्गिरसोऽन्येनोदगायदिति वाचा च ह्येव स प्राणेन चोदगायदिति ॥ पदच्छेदः। तत्, ह, अपि, ब्रह्मदत्तः, चैकितायनेयः, राजानम् , भक्षयन् , उवाच, अयम् , त्यस्य, राजा, मूर्धानम् , विपातयात्, यत्, इतः, अयास्यः, आङ्गिरसः, अन्येन, उदगायत् , इति, वाचा, च, हि, एव, सः, प्राणेन, च, उदगायत्, इति ।। अन्वय-पदार्थ । तत्-तिस विषय में ।+आख्यायिका ह अपिएक आख्या- .
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