पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७२०

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बृहदारण्यकोपनिषद् स० का धूम । धूमप्रसिद्ध धूम है। अर्चिः उसकी ज्वाला । अचिः प्रसिद्ध वाला है । अङ्गारा उसके अनार । अङ्गा-प्रसिद्ध अङ्गार हैं । विस्फुलिङ्गाः उसकी चिनगारियां। विस्फुलिझा: प्रसिद्ध चिनगारियां हैं । तस्मिन् उसी । एतस्मिनस । अग्नी-अग्नि में । देवाः देवना यानी बान्धयगण । पुरुषम् मृतक पुरुपको। उहति-होम करते हैं । तस्याः टस । याहुत्यै आहुति करके । पुरुपा पुरुष । भास्वरवर्ण: दीतिमान् । संभवति होता है। भावार्थ । हे गौतम ! मरने के पश्चात् बान्धव और ऋत्विज् धादि मृतक पुरुप को श्मशान में दाइ के लिय ले जाते हैं, इसका जलानेवाला अग्नि होता है, जलाने की लकड़ी समिधा होती है, धूमही प्रत्यक्ष धूम है, ज्यालाही प्रत्यक्ष ज्याला है, अगार ही प्रत्यक्ष अङ्गार हैं, चिनगारियांही प्रत्यक्ष चिनगारियां हैं, श्मशानवाली अग्नि में बान्धवगरण मृतक पुरुष को याहुति- रूप से डालते हैं, ऐसी बाहुति से वह पुरुष जो शरीर से प्रथमही निकल गया है, थतिशय दीप्तिमान हो जाता है ॥१४॥ मन्त्रः १५ ते य एवमेतद्विदुर्ये चामी अरण्ये श्रद्धा सत्यमुपा- सते तेऽचिरभिसंभवन्त्यचिपोऽहरहापूर्यमाणपक्षमापूर्य- माणपक्षाचान्पएमासानुदादित्य एति मासेभ्यो देव- लोकं देवलोकादादित्यमादित्याद्वैद्युतं तान्वैद्युतान् पुरुषो मानस एत्य ब्रह्मलोकान् गमयति ते तेषु ब्रह्मलोकेपु पराः परावतो वसन्ति तेषां न पुनरावृत्तिः ॥