पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७६९

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अध्याय ६ ब्राह्मण ४ ७५५ ते तेरे । प्राणापानौमाण अपान को । शाददे मैं हरे लेता हूँ। अलौ-उस शत्रु का नाम लेकर । इति=ऐसा । + व यात्-कहे कि । + त्वम्=तूने । मममेरी । समिद्ध प्रदीप्त योपाग्नि में । अहौषी: आहुति दी है। + अत: इस- लिये । ते-तेरे । पुत्रपशून्सन्तान और पशुओं को। श्रादे नाश करता हूँ। अलौ-उस शत्रु का नाम लेकर । इति ऐसा । +5 यात्-कहे कि । + त्वम्-तूने । मममेरा । समिद्धे प्रदीप्स योपारिन में । अहीपी: आहुति दी है । + अतः इस- लिये। तेरे । इष्टासुकृते-इष्ट और सुकृत के कर्मों को। श्राद दे मैं हरता हू। सौ-उस शत्रु का नाम लेकर । इति- ऐसा । यात्=कहे कि । + त्वम्-तूने । मम मेरी । समिद्धे प्रदीप्त योषाग्नि में । अहौषो-होम किया है। + अतः इस- लिये । ते-तेरी । आशापराकाशोन्याशाओं को । प्राददे-हर लेता हूँ। असौ-उस शत्रु का नाम लेकर । इति ऐसा । + ब्रूयात्= कहे कि । एवंचित्-ऐसा जाननेवाला । ब्राह्मणः ब्राह्मण 1 यम् जिसको । शपति शाप देता है । सा-वह । एषः यह । निरिन्द्रियः विषयासक्तं । विसुकृतः पापी शत्रु । वै-अवश्य । अस्मात् इस । लोकात्-लोक से । प्रैति-मर कर चला जाता है। तस्मात्-इस लिये । एवंवित्-ऐसा माननेवाला पुरुष । श्रोत्रियस्य-वेद के पढ़नेवाले की । दारेण स्त्री के | + सह-साथ । उपहासम्-उपहास को । न-न । इच्छेत् इच्छा करे। हि- क्योंकि । एवंवित्-ऐसा श्रोत्रिय ब्राह्मण । पर:=उसका शत्रु । .भवंतिम्बनं जाता है। भावार्थ । यदि स्त्री का कोई जार हो, और उस जार के साथ उसका पति द्वेष करना चाहे, तो एक मिट्टी के कच्चे वर्तन -