पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय ६ ब्राह्मण ४ ७५७

पदच्छेदः। अथ, यस्य, जायाम्, अार्तवम् , विन्देत , त्र्यहम्, कंसेन, पिबेत् , अहतवासाः, न, एनाम् , वृषलः, न, वृपली, उपहन्यात् , त्रिरात्रान्ते, आप्लुत्य, व्रीहीन् , अव- . घातयेत् ॥ 1 अन्वय-पदार्थ । अथ-इसके उपरान्त । यस्य-जिसकी । जायाम्-स्त्री आर्तवम् विन्देत् कपड़ों से हो । + सा-वह स्त्री । कंसेन% कांसे के बर्तन के द्वारा । व्यहम् + न पिवेत्-तीन दिन तक पानी न पीवे । + च-और । अहतवासाः + स्यात्-कपड़े न धोवे । + चम्और । एनाम्-उसको । वृषलः शूद्र । नन । उपहन्यात्-छूवे । वृषलीशूद्र की स्त्री भी। + एनाम् उसको । नम्न । + उपहन्यात्-छूवे । त्रिरात्रान्ते-तीन दिन के पीछे । + सा-वह स्त्री। श्राप्लुत्य-नहा कर । ब्रीहीन्-चरु दनाने के लिये धान । अवघातयेत् कूटकर तैयार करें। भावार्थ । अगर स्त्री रजस्वला धर्म से होय तो उसको चाहिये कि वह तीन दिन तक कांसे के बर्तन में न खावे, न पीवे और न कपड़ा धोवे, और उसको शूद्र या शूद्री न छूवे और न वह शूद्र या शूद्री को छूवे, तीन दिन के पीछे स्नान करके चरु बनाने के लिये धान को कूटकर तैयार करे ॥ १३ ॥ मन्त्र: १४ स य इच्छेत्पुत्रो मे शुक्लो जायेत वेदमनुब्रुवीत