पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७७२

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. बृहदारण्यकोपनिषद् स० सर्वमायुरियादिति क्षीरोदनं पाचयित्वा सर्पिष्मन्तमश्नी- यातामीश्वरौ जनयितवै ।। पदच्छेदः। सः, यः, इच्छेत्, पुत्रः, मे, शुलः, जायेत, वेदम्, अनुब्रुवीत, सर्वम् , आयुः, इयात् , इति, क्षारौदनन् , पाच- यित्वा, सर्पिष्मन्तम् , अश्नीयाताम्, ईश्वरौ, जनयितवै ॥ अन्वय-पदार्थ । से मेरे । शुक्ला गौरवर्ण का । पुत्रः-पुत्र । जायेत उत्पन्न होवे । वेदम् अनुब्रुवोतम्वेद का पढ़नेवाला होवे । सर्वम् पूर्ण। आयुः प्रायु को । इयात्प्राप्त होवे । इतिऐसा । याजो। सःबह पुरुप । इच्छेत् इच्छा करे तो । क्षीरोद- नम्-जोर । पाचयित्वा पकाकर । + च-और। सर्पिष्मन्तम्- घृतयुक्त | + कृत्वाकरके । श्रश्नीयाताम्-दोनों सी पुरुष खावें । तदाब । जनयतवै-वैसे पुत्र उपस करने में । + तो वे दोनों। ईश्वरी समर्थ । स्याताम् हो । भावार्थ। जो पुरुष ऐसी इच्छा करे कि मेरे गौरवर्ण का लड़का होय, और वेद का पढ़नेवाला होय, और पूर्ण आयु को प्राप्त होवे, तो उसको चाहिये कि खीर पकाकर, और उसमें घी डालकर वह और उसकी स्त्री दोनों खायें, ऐसा करने से वे दोनों ऐसे लड़के के उत्पन्न करने में समर्थ होते हैं ॥ १४ ॥ मन्त्रः १५ अथ य इच्छेत्पुत्रों में कपिलः पिङ्गलो जायेत छौ