अध्याय ६ ब्राह्मण ४ को और उसकी स्त्री को चाहिये कि जल में चावल को पकाकर और घृत मिलाकर खावें, ऐसा करने से वे दोनों अभीष्ट पुत्र के पैदा करने में समर्थ होते हैं ॥ १६ ॥ मन्त्रः १७ अथ य इच्छेद् दुहिता मे पण्डिता जायेत सर्वमायु- रियादिति तिलौदनं पाचयित्वा सर्पिष्मन्तमश्नीयाता- मीश्वरौ जनयितचे ॥ पदच्छेदः। अथ, यः, इच्छेत् , दुहिता, मे, पण्डिता, जायेत, सर्वम्, आयुः, इयात् , इति, तिलौदनम्, पाचयित्वा, सर्पिष्मन्तम्, प्रश्नीयाताम् , ईश्वरी, जनयितवै ॥ अन्वय-पदार्थ। श्रथौर । या जो पुरुष । इच्छेत्-इच्छा करे कि । मे- मेरो । दुहिता कन्या । पण्डितागृह कर्म में निपुण । जायेत होवे । च-और । सर्वम् पूर्ण । श्रायुः-धायु को । इयात्- प्राप्त होवे तो। तिलौदनम्-तिल-चावल । पाचयित्वा-पकवा कर । सर्पिष्मन्तम्-घृतयुक्त । + कृत्वा करके । + दम्पती स्त्री-पुरुष । अश्नीयाताम्-खावें । इति ऐसा करने से। जनयितवै-अभीष्ट पुत्री पैदा करने के लिये । + तौथे। ईश्वरी-समर्थ । + स्याताम्-होंगे। भावार्थ। अगर पुरुष इच्छा करे कि मेरे को ऐसी कन्या उत्पन हो जो गृह के कार्य में निपुण हो, पूर्ण आयु वाली हो तो
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