अध्याय १ ब्राह्मण.४. है, मंत्र की ओर अभिमुख होकर उद्गाता कहता है कि तू मरण हेतु अज्ञान से मुझे देवस्वरूप को प्राप्त कर और देवस्वरूप मुझ वना-दे, मृत्यु से अंमरत्व को प्राप्त कर, अब आगे जो नौ बचे हुये पधमान स्तोत्र हैं उनके पढ़ने पर उद्गाता अपने लिये अन्न का गान करे, और वहीं यह प्राण- वेत्ता उद्गाता जिस 'पदार्थ की इच्छा करे उसी पदार्थ को उन्हीं नौ पवमान स्तोत्रों को पढ़ते हुये वर माँगे। हे सौम्य ! उद्गाता अपने लिये और यजमान के लिये जिस पदार्थ को चाहता है उस पदार्थ का गान करके प्राप्त कर सकता है, उसका यह प्राण ज्ञानसमयानुसार सुरों का ऊपर नीचे ले जाना लोकों के विजय करने का साधन है, जो साम को इस प्रकार जानता है वह अवश्य मुक्त हो जाता है ॥ २८ ॥ इति तृतीय ब्राह्मणम् ॥ ३ ॥ . अथ चतुर्थं ब्राह्मणम् । मन्त्रः १ श्रात्मैवेदमन आसीत्पुरुपविधः सोऽनुवीक्ष्य नान्यदा- त्मनोऽपश्यत्सोऽहमस्मीत्यग्रे व्याहरत्ततोऽहं नामाभवत्त- स्मादप्येतामन्त्रितोऽहमयमित्येवाग्रे उक्त्वाथान्यनाम प्रवृते यदस्य. भवति स यत्पूर्वोऽस्मात्सर्वस्मात्सर्वान्पाप्मन औपत्तस्मात्पुरुप ओपति ह वै स तं योऽस्मात्पूर्वो बुभूषति य एवं वेद ।।
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