पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/८९

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अध्याय १ ब्राह्मण ४ ७३ . में यानी स्त्री और पुरुष के रूप में विभाग कर दिया. तिसी शरीर के विभाग होने पर पति और पत्नी दो होते भये, इसलिये शरीर का अर्द्धभाग दाल के समान है, ऐसा याज्ञ- वल्क्य ने कहा है, इसी कारण इस पुरुष का अर्द्धभाग जो आकाश की तरह खाली है, वह विवाहिता स्त्री करके ही पूरण किया जाता है, और फिर वही प्रजापति यानी स्वायंभू मनु उसी स्त्री यानी शतरूपा से मैथुन करता भया तिसी मैथुन से मनुष्य की सृष्टि उत्पन्न होती भई ॥ ३ ॥ सो हेयमीक्षाञ्चक्रे कथं नु मात्मन एव जनयित्वा संभवति हन्त तिरोऽसानीति सागौरभवद् पभ इतरस्तां समेवाभवत्ततो गावोऽजायन्त वडवेतराभवदश्ववृषभ इतरो गर्दभीतरा गर्दभ इतरस्तां समेवाभवत्तत एकशफ- मजायताजेतराभवद् वस्त इतरोऽविरितरा मेष इतरस्तां समेवाभवत्ततोऽजावयोजायन्तैवमेव यदिदं किञ्च मिथुन- मापिपीलिकाभ्यस्तत्सर्वमसृजत ॥ पदच्छेदः। सा, उ, ह, इयम् , ईक्षाञ्चक्रे, कथम् , नु, मा, आत्मनः, एव, जनयित्वा, संभवति, हन्त, तिरः, असानि, इति, सा, गौः, अभवत्, वृषभः, इतरः, ताम्, सम्, एव, अभवत् , ततः, गावः, अजायन्त, बडवा, इतरा, अभवत्, अश्ववृषभः,