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बेकन-विचाररत्नावली।


बाहर जाने की भूल नहीं होसकती। देवदूतों[१] को मर्य्यादा के बाहर प्रभुत्व पानेकी इच्छा हुई; इसीसे उनका अधःपतन हुआ। मनुष्य[२] को मर्य्यादाके बाहर ज्ञान सम्पादन करनेकी इच्छा हुई; अतः उसकाभी अधःपतन हुआ। परन्तु सौजन्यकी मर्य्यादा नहीं; अतएव न तो उससे देवदूतोहींको किसी प्रकारका भय है और न मनुष्योंही को भय है। दूसरेका कल्याण करनेकी वासना, मनुष्यके मनमें, स्वभावहीसे खचित रहता है; यहां तक कि यदि उसकी प्रवृत्ति मनुष्यकी ओर न हुई तो और और जीवोंकी ओर होजाती है। तुर्क लोगोंको देखिये। ये लोग महा निर्दयी और क्रूर होतेहैं; परन्तु पशुओंको वे विशेष दयादृष्टि से देखतेहैं, और कुत्ते तथा पक्षियों तकको खिलाते पिलाते हैं। बसवीचियसने लिखा है कि कांस्टैंटिनोपलमें एक बार एक क्रिश्चियन लड़केने किसी लंबे चोंचवाले पक्षीके मुखमें कपड़ा भर कर उसका बोलना बन्द कर दिया। इस नटखटताको देख, तुर्क लोग, उसके ऊपर पत्थर बरसाने लगे।

सौजन्य और दानशीलतामें प्रमाद होना सम्भव है। इटैलियन लोगोंमें एक अप्रशस्त कहावत प्रसिद्ध है कि "अमुक मनुष्य इतना अच्छा है कि वह किसी अच्छे कामके योग्य नहीं"। इटलीके डाक्टर


  1. क्रिश्चियन लोगों का कथन है कि देवदूतोंको, देवताओंसे भी अधिक प्रभुत्वशाली होनेकी इच्छा हुई। अतः उन्हों ने देवताओं से विरोध आरम्भ किया। इस आचरणसे देवता अप्रसन्न हुए और उन्होंने देव दूतों को स्वर्ग से निकाल दिया।
  2. देवताओंने एक मनुष्य युग्म उत्पन्न करके उन दोनोंको एक वाटिका में रक्खा और कहा, कि तुम लोग और सब वृक्षोके फल खाना, परन्तु 'ज्ञानवृक्ष' के फलों को हाथ मत लगाना। इस आज्ञाकी ओर ध्यान न देकर, ज्ञानवान होने के लालचसे, उस मानवजोड़ीने, 'ज्ञानवृक्ष' के भी फल खा लिए; जिसका परिणाम यह हुआ, कि देवताओंने उस युग्म को उस वाटिकासे निकाल दिया यह भी क्रिश्चियन लोगोंका कथन है।