मनुष्य आवेशमें आकर प्राण छोड़ता है, और उस समय उसे विशेष कष्ट नहीं होता, वैसेही काम में लगे रहने से भी मृत्यु की यातना मनुष्यको अधिक नहीं भोग करना पड़ती। मनुष्य के समस्त इच्छित कार्य फलीभूत और आशाएँ पूर्ण होनेपर जो मृत्यु आतीहै वह अवश्य सबसे बढ़कर है। ऐसी मृत्युकी सदैव अभिलाषा रखनी चाहिये। मृत्युसे एक यह अलभ्य लाभ है कि, मरनेके अनन्तर मनुष्यकी कीर्ति विशेष फैलती है। मृतमनुष्यका लोग मत्सरकरना छोड़देते हैं।
सुचिन्त्य[१] चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं
सुदीर्घकालेऽपि न याति विकियाम्।
हितोपदेश।
भाग्य बाज़ारके समानहै। जैसे कुछ देर ठहरनेसे बाजार में बेचनेके लिए लाएगये पदार्थों का भाव बहुधा घटजाताहै वैसेही योग्य अवसर प्राप्तहोनेपर कार्य का निर्वाह न करनेसे भाग्य की भी कृपा कम हो जाती है; तथापि भाग्य सिबिला[२] के माँगने के समान भी है; अर्थात् जैसे सिबिलाने अपना सारामाल बेचने के लिए प्रस्तुत करके जो मूल्य
- ↑ जो कुछ विचार करके कहाजाता है अथवा जो कुछ विचार करके किया जाताहै वह कभी भी नहीं बिगड़ता।
- ↑ अपनी विद्याके बलसे भविष्यत् का ज्ञान रखनेवाली स्त्रियों को रोमके निवासी 'सिंबिला' कहते थे। लिखाहै कि, एकबार रोमके टर्किन राजा के पास छः पुस्तकें लेकर एक सिबिला आई और उन पुस्तकों का बेहिसाब मूल्य माँगने लगी। जब राजाने न लिया तब उसने उनमेंसे तीन पुस्तकें जलाकर शेष ६ का वही मूल्य माँगा। फिरभी जब टर्किनने लेना स्वीकार न किया तब तीन पुस्तकें और जला दी; परन्तु मूल्य में तिसपर भी उसने कमी न की। तब आश्चर्य में आकर राजाने वे तीन पुस्तकें लेकर देखा तो रोमराज्य में होनेवाले अनेक उपद्रव तथा उनके शान्त करने का उपाय उनमें लिखा पाया शेष ६ पुस्तकों में क्याथा सो नहीं जानागया।