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बेकन-विचाररत्नावली।


उसका पहिले कहा क्रम २ से मालको जलाकर शेष जो कुछ रहाउसका भी मूल्य वह वही कहती गई। उसीप्रकार भाग्य के अनुकूल पहिला योग आनेपर जो मूल्य उसका देनापड़ताहै, तदनन्तर अन्य योग आनेपर पहलेकी अपेक्षा उसका महत्त्व चाहै कितनाही कम क्यों न हो-वही मूल्य देनापड़ता है। कहावत प्रसिद्ध है कि, आयाहुआ सुप्रसंग अग्रभाग में पहिले अपनी लटैं दिखाताहै और यदि उन्हें यथा समय न पकड़लिया जाय तो वह पीछे फिरजाताहै, और ऐसा होनेसे उसकी केशहीन चाँदमात्र सम्मुख आजातीहै। अथवा ऐसा कहिये कि, पहिले वह बोतलका मुख सामने करता है और उसे जो तत्काल पकड़ न लिया जाय तो वह बोतलके नीचे का मोटा भाग आगे करदेताहै, जिसको हस्तगत करनमें कठिनता पड़ती है। तात्पर्य यह है कि, अनुकूल समय आनेपर उसे जाने न देना चाहिये।

जो काम करना है उसका आरम्भ सोच समझ कर उपयुक्त समयपर करनाचाहिये। यह सबसे बढ़कर बुद्धिमानीकी बातहै। होनेवाले विघ्नोंका पूरा पूरा विचार करना उचित है। यह कदापि न समझनाचाहिये कि, क्षुद्रविघ्नों से हमारा क्या बिगड़ेगा? जो विघ्न देखनेमें स्वल्प जानपड़ते हैं वे कभी कभी अन्तमें अपरिहार्य होजाते हैं और उनकी ओर ध्यान न देनेसे लोगोंको बहुधा हार माननी पड़ती है। बहुतसे विघ्न ऐसे हैं कि, यद्यपि वे निकट नहीं आये तथापि चलकर आधीदूरपर उनका नाश करनाचाहिये। अपने निकट उनके आनेकी प्रतीक्षा करते बैठे रहना उचित नहीं; क्योंकि जो मनुष्य अधिक कालपर्यन्त निरीक्षण करते रहता है उसे उन्नीस बिस्वे निद्रा आजाती है। विघ्न निकट आनेके लिये प्रतीक्षा करते रहना जैसे मूर्खताकी एक सीमा है, वैसेही उनकी दीर्घ छायाको देखकर अकालहीमें उनका प्रतिबन्ध करना अथवा उनके सन्मुख कटिबद्ध होकर उनको अपने ऊपर आघात करनेके लिये सूचना देना मूर्खताकी दूसरी सीमा है।