पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/३८

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स्वार्थपरता।


हिचकते। एतादृश जघन्यकृत्य करके जो लाभ राजपुरुष उठाते हैं वह लाभ उनकी योग्यता के अनुसार थोड़ाही होता है; परंतु उस लाभके परिवर्तन में अपने स्वामी को जो हानि वे पहुँचाते हैं उस हानिका परिणाम स्वामी की योग्यतानुसार अवश्य अधिक होता है। सत्यतो यह है कि, अत्यन्त स्वार्थप्रिय मनुष्यों का स्वभावही ऐसा होता है, कि वे क्षणभर शीत से बचने के लिये पडोसी के घर को जलानेसे नहीं सकुचते। यह सब होने पर भी ऐसों से स्वामी बहुधा सुप्रसन्न रहते हैं क्योंकि ये लोग अपना इष्ट साधन के लिये स्वामी की प्रसन्नता सम्पादन करने में कभी भी त्रुटि नहीं करते। अतएव स्वामी को प्रमुदित रखने और स्वयं लाभ उठाने के लिए उसके लाभ को रसातलमें पहुँचाने से वे पश्चात्पद नहीं होते।

स्वार्थसाधन के लिये बुद्धिमानी दिखाना अतिशय गर्ह्य काम है। चूहों की बुद्धिमानी ऐसीही है; जब घर गिरने लगता है तब वे निकल जाते हैं। लोमडीका भी स्वभाव इसी प्रकार का है; वह दूसरे के खोदेहुए बिलमें प्रवेश करके खोदनेवालेही को निकाल देती है। मगर भी ऐसेही होते हैं; जीवों के निगल जाने के पाहिले वे रोने लगते हैं। जैसा सिसरो[१]ने पांपी[२]के विषयमें कहाहै, एक बात यह अवश्य ध्यान में रखनी चाहिये कि आत्मंभरि और स्वार्थपर मनुष्यों का कभी अभ्युदय नहीं होता। वे यह समझते हैं कि हमने अपने चातुर्यसे लक्ष्मी रूपी पक्षीके पक्ष अति दृढतापूर्वक बांधकर उसे अपने घररूपी पिंजरे में


  1. सिसरो रोममें एक अत्यन्त प्रभावशाली वक्ता और तत्त्ववेत्ता होगया है। उसके राजकीय व्यवहारों से अप्रसन्न होकर ईसवी सन् के ४३ वर्ष पहिले ६२ वर्ष के वयमें उसे कई राजपुरुषोंने मिलकर मारडाला।
  2. पांपी रोमका एक प्रख्यात सरदार और सेनापतिथा। राजाके प्रतिकूल सिर उठानेके कारण ५९ वर्षकी अवस्थामें ईसवी सन्के ४८ वर्ष पहिले राजकीय पुरुषोंने विश्वासघात करके उसे मारडाला।