पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/५६

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आत्मश्लाघा।


अथवा किसीके सद्गुण और महत्त्वकी प्रसिद्धि करनी हो तो ऐसे लोग(अर्थात् प्रशंसक) विशेष काम आते हैं।

वृथा अभिमानकी बातें करने और असत्य बोलनेसे परिणाम दुर्धर होता है। जब कोई मनुष्य, राजाओंमें मध्यस्थ होकर, किसी तीसरे राजाके साथ युद्ध करनेके लिए उन्हें उत्तेजित करता है तब वह परस्परके सैन्यकी एक दूसरेसे बेप्रमाण प्रशंसा करता है। इसी प्रकार जब कोई मनुष्य, किसी अन्य दो मनुष्योंसे, बारी बारीसे, व्यवहार की बातें कहता है तब वह प्रत्येकसे अपने विषयमें यही बहाना करता है कि अन्यकी अपेक्षा वह उससे अधिक आत्मत्व रखता है। ऐसी तथा इस प्रकारकी और बातोंसे कुछ न कुछ फलप्राप्ति होती ही है; क्यों कि, प्रशंसा होते होते प्रशंसित पुरुषका मान आवश्यही बढजाता है और मान बढजानेसे लाभभी निःसंदेह होता है।

सेनाके अधिकारी तथा सिपाही लोगोंमें बड़ाई बड़े काम आती है। जिसप्रकार लोहेपर घिसनेसे लोहा तीक्ष्ण होजाता है उसी प्रकार एकके धैर्यको देखकर दूसरोंका भी धैर्य बढता है। साहस और महत्त्वके काममें कुछ तो बडाई करनेवाले और कुछ गम्भीरस्वभावके मनुष्य होने चाहिएँ; क्यों कि, बड़ाई बूकनेवालोंके कारण काममें उत्तेजना आती है; और गम्भीर स्वभाववालोंके कारण उसकी यथोचित सिद्धि होती है। विद्वत्ताका प्रकाश शीघ्र होनेके लिए भी कुछ आडम्बर अवश्य करना पड़ता है। कीर्तिसम्पादन करनेकी इच्छा सभीको होती है। जो लोग पुस्तकें लिखकर औरोंको यह उपदेश देते हैं कि, कीर्ति तुच्छ है वे अपनी पुस्तकोंके ऊपर अपना नाम क्यों लिखते हैं? कीर्तिकी यदि उन्हें अभिलाषा नहीं तो वे अपने नामको फिर क्यों सर्वसाधा-