एकबारही किसी साहसके काममें अपना सारा धन लगा देता है वह बहुधा डूबता है और 'भिक्षां देहि' करनेतक नौबत पहुँचती है। अतएव साहसके काममें रुपया लगानेके पहिले निश्चित प्राप्तिका परिमाण देख लेना चाहिए जिसमें समयपर जो कुछ हानि हो वह उस प्राप्तिसे पूरी होसके।
ठेकेपर सारा माल अकेलेही लेकर उसे बेचनेसे भी बहुत लाभ होता है। परन्तु ऐसे स्थानमें यह काम करना चाहिए जहां बेचने में किसी प्रकारका प्रतिबन्ध न हो। किस वस्तुकी किस समयमें मांग होगी, इसका विचार करके माल भरनेसे और भी अधिक लाभ होता है।
दूसरेकी नौकरी करके जो पैसा मिलता है वह अवश्य सुमार्गका पैसा होता है और पास रहता भी है परंतु खुशामद करके तथा और ऐसेही नीच काम करके जो मिलता है वह महा निंद्य होता है। मृत्युपत्र द्वारा सम्पत्ति प्राप्त करने अथवा मृत्युपत्रके लेखानुसार कार्यवाही करनेका काम मिलनेका प्रयत्न करना और भी अधिक अधम समझना चाहिए। ऐसे कामोंमें नौकरी की भी अपेक्षा अति नीच लोगोंका आज्ञाकारी बनना पडता है।
जो लोग द्रव्यको तुच्छ समझते हैं उनका विश्वास न करना चाहिए। वे द्रव्यको तुच्छ इसलिए समझते हैं; क्यों कि उसके मिलनेकी उन्हैं आशा नहीं रहती। ऐसोंको दैवयोगसे यदि सम्पत्ति मिलगई तो फिर कुछ न पूछो; मिलनेपर, वे औरोंसे भी अधिक मदान्ध होजाते हैं।
मनुष्यको मक्खीचूस न होना चाहिए; द्रव्यके पंख होते हैं; कभी कभी वह आपही आप उडजाता है और कभी कभी अधिक द्रव्य सम्पादन करनेकी इच्छासे उसे उड़ाना पड़ता है।
मरनेके समय मनुष्य अपनी सम्पत्ति अपने सम्बन्धियोंको देजाते हैं; नहीं तो, किसी सार्वजनिक कामके लिए अर्पण कर देते हैं। परिमित द्रव्य दोनोंके लिए देना उत्तम है। किसी अल्पवयस्क और