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बेकन-विचाररत्नावली।

तत्त्वज्ञान और परमार्थविषयक सत्यको छोड़ अब हम साधारण व्यवहार विषयक सत्यका विचार करते हैं। जो मनुष्य कपटी और अप्रमाणिक हैं वे भी इस बातको स्वीकार करेंगे कि, निष्कपट और सरल व्यवहार मनुष्यमात्रका भूषण है। सत्यमें असत्यका मेलकरनेसे वही परिणाम होता है जो परिणाम सोना और चाँदीमें राँगा इत्यादि कम मूल्यके धातुओंको मिलानेसे होता है। यह सत्य है कि, हीन धातुके मिश्रणसे सोने अथवा चाँदीके सिक्के अच्छे निकलते हैं परन्तु उनका मूल्य अवश्यमेव कम होजाता है और सब कहीं उनपर बट्टा लगने लगता है। असत्य बोलनेसेभी बातमें बट्टा लगता है, यह सभी जानते हैं। समस्त प्राणिवर्गमें सर्प[१] अधम है, क्योंकि पैरसे न चलके वह पेटके बल टेढी चाल चलता है। इसलिये उस मनुष्यको भी सर्पहीके समान अधम समझना चाहिये जो सत्यकी सरल रीतिका अवलम्बन न करके असत्यकी वक्र गतिको अंगीकार करता है। असत्यव्यवहार और कृत्रिमभाव प्रकाशित होनेपर मनुष्यको जितनी लज्जा लगती है उतनी लज्जा और किसीभी जघन्य कृत्यके प्रकाशित होनेपर नहीं लगती। "रे मूर्ख! ऐसा असद्ध्यवहार करता है"! इस प्रकार किसीको कहनेपर उसे इतना क्रोध और इतनी लज्जा क्यों लगनी चाहिये? इसपर मान्टेन कैसी मार्मिकतासे कहता है कि "किसीको कहना कि, तुम असत्यका वर्त्ताव करतेहो मानों उसे यह सूचित करना है कि, तुम ईश्वरसे तो डरते नहीं किन्तु मनुष्यसे डरतेहो"; क्योंकि असत्य व्यवहार करनेवाला असत्यको, डरके मारे, मनुष्योंसे तो छिपाता है परन्तु उसके समस्त कृत्योंका साक्षी परमेश्वर है, इसका उसे स्मरणही नहीं रहता।


  1. क्रिश्चियन लोगोंका कथन है कि, सर्पने मनुष्योंके आदि पितरोंको धोखा दिया था इसलिये ईश्वरने उसे यह शाप दिया कि, तू आजसे पैरोंके बल न चलकर पेटके बल चलैगा।