पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१०२

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द्वितीय अध्याय बुद्ध की शिक्षा में सार्वभौमिकता अब हम बुद्ध की शिक्षा पर विचार करेंगे । बुद्ध का उपदेश लोकभाषा में होता था; क्योंकि उनकी शिक्षा सर्वसाधारण के लिए थी। बुद्ध के उपदेश उपनिषद् के वाक्यों का स्मरण दिलाते हैं। उनकी शिक्षा की एक बड़ी विशेषता सार्वभौमिकता थी। इसी कारण एक समय बौद्धधर्म का प्रचार एक बहुत बड़े भूभाग में हो सका। उन्होंने मोक्ष के मार्ग का श्राविकार किया; किन्तु वह मार्ग प्राणिमात्र के लिए खुला था । जन्म से कोई बड़ा होता है या छोटा-इसे वे नहीं मानते थे। वृषल-सूत्र (सुत्तनिपात ) में वे कहते हैं:- "चन्म से कोई वृषल नहीं होता; जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता । कर्म से वृषल होता है; कर्म से ब्राह्मण होता है । हे ब्राह्मण ! इस इतिहास को जानो कि यह विश्रुत है कि चाण्डाल- पुत्र ( श्वपाक ) मातंग ने परम यश को प्राप्त किया। यहां तक कि अनेक क्षत्रिय और ब्राह्मण उसके स्थान पर जाते थे। अन्त में वह ब्रह्मलोक को प्राम हुा । ब्रह्मलोक की उपपत्ति में बाति बाधक नहीं हुई। 'श्राश्वलायन-सूत्र में भगवान् से आश्वलायन ब्राहाण माणवक ने कहा कि हे गौतम ! ब्राह्मण ऐसा कहते हैं-ब्राह्मण ही श्रेय वर्ण है, अन्य वर्ण हीन हैं; ब्राह्मण ही शुद्ध होते हैं; अब्राह्मण नहीं; ब्राह्मण ही ब्रह्मा के औरस पुत्र हैं, उनके मुम्ब से उत्पन्न हुए हैं-याप इस विषय में क्या कहते हैं ?" भगवान् ने उत्तर दिया- "हे श्राश्वलायन ! क्या तुमने मुना है कि यवन कम्बोज में और अन्य प्रत्यन्तिक जनपदों में दो वर्ण हैं--प्रार्य और दास । श्रार्य से दास होता है, दास से प्रार्य होता है । "हाँ, मैने ऐसा सुना है।" "हे आश्वलायन ! ब्राह्मणों को क्या बल है, जो वे ऐसा कहते हैं कि ब्राह्मण ही श्रेष्ठ वर्ण है, अन्य हीन वर्ण हैं। क्या मानते हो कि केवल ब्राह्मण ही सावध (पाप) से प्रतिविरत होकर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं; क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नहीं ?" "नहीं गौतम "क्या तुम मानते हो कि ब्रामण ही मैत्र-चित्त की भावना में समर्थ होते हैं, ब्राह्मण ही नदी में स्नान कर शरीरमल को क्षालित कर सकते हैं ? इस विषय में क्या कहते ? यदि क्षत्रिय-कुमार ब्राह्मण-कन्या के साथ संवास करे और उसके पुत्र उत्पन्न हो तो वह पुत्र पिता के भी सहारा है, माता के भी सदृश है । उसे क्षत्रिय भी कहना चाहिये, उसे ब्राह्मण भी कहना