पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/११३

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तृतीय अध्याय बुद्ध देशना की भाषा तथा उसका विस्तार भगवान बुद्ध ने किस भाषा में धर्म का उपदेश दिया था यह जानने के लिए, हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं हैं। बुद्धघोष का कहना है कि यह भाषा मागधी थी और उनके अनुसार पालि-भाषा की प्रकृति मागधी भाषा है । रीस डेविड्स का कहना है कि बुद्ध की मातृभाषा कोशल की भाषा थी और इसी भाषा में बुद्ध ने धर्म का प्रचार किया क्योंकि कोशल के राजनीतिक प्रभाव के कारण यह भाषा उस समय दिल्ली से पटने तक और श्रावस्ती से अवन्ती तक बोली बाती थी। उसका यह भी मत है कि पालि-भाषा कोशल की बोलचाल की भाषा से निकली थी। गलि-भाषा की बनावट पर यदि दृष्टि डाली जाय और उसकी तुलना अशोक के शिला- लेखों की भाषा से की जाय तो मालूम पड़ेगा कि पालि गिरनार-लेख की भाषा से मिलती-जुलती है। इस कारण वेस्टरगार्ड और ई. कुड्नने पालि को उज्जैन की भाषा से संबद्ध बताया। उनका कहना है कि अशोक के पुत्र ( या भाई ) महेन्द्र का जन्म उज्जैन में हुआ था और महीने ही लंका-द्वीप में बौद्ध-धर्म का प्रचार किया। उनका कहना है कि यह स्वाभाविक है कि महेन्द्र ने अपनी मातृभाषा का प्रयोग धर्मप्रचार के कार्य में अवश्य किया होगा। इस कारण उनके मत में पालि उज्जैन की भाषा से संबन्ध रखती है । जो कुछ हो, भाषा की बनावट को देखते हुए हम यह निर्विवाद रूप से कह सकते हैं कि पालि भारत के पश्रिम प्रदेश की कोई भाषा मालूम पड़ती है और इसके विकास में संस्कृत का अच्छा खासा हाथ है । यह हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि भगवान् बुद्ध ने किस भाषा में धर्म का प्रचार किया पर चुल्लवमा से हमको यह मालूम है कि भगवान् बुद्ध किसी भाषा विशेष पर जोर नहीं देते थे। चुल्लवम्ग ( ५।३३।१ ) में लिखा है कि किसी समय दो मितुओं ने भगवान् से शिकायत की कि भिन्नु बुद्ध-वचन को अपनी अपनी बोली में ( सकाय-निरुत्तिया) परिवर्तित कर रहे हैं । इसलिए उन्होंने भगवान् से निवेदन किया कि संस्कृत (छन्दस् ) के प्रयोग की अाशा प्रदान की जाय जिसमें एक ही भाषा में सारे बुद्ध-वचन सुरक्षित रहे और भिन्न-भिन्न प्रदेश के भिन्तु अपनी इच्छा के अनुसार बुद्धवचन को भिन्न-भिन्न रूप न दे सकें। बुद्ध ने आर दिया कि मैं भितुओं को अपनी-अपनी भाषा के प्रयोग करने की आशा देता हूँ (अनुजानामि भिक्खषे सकाय-निरुनिया बुद्ध-वचनं परियापुणिर्नु) और उनकी प्रार्थना स्वीकार नहीं की। बुद्ध शब्द-विशेष के प्रयोग का महत्त्व नहीं मानते थे। उनकी केवल यही इच्छा थी कि लोग धर्म को जाने और उसका अनुसरण करें। इस प्राशा के अनुसार मिदु बुद्ध शिक्षा को पैशाची, अपभ्रंश, संस्कृत, मागधी या अन्य किसी भाषा में उपनिबद्ध कर सकते Y