पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/११६

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चौब-धर्म दर्शन सांची के लेखों में एक भिक्षु को पंचनेकायिका (पञ्चनकायिक ) कहा है। यह शब्द भरहूत के लेख में (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व ) भी पाया जाता है। ये पाँच निकाय-या अगम इस प्रकार हैं-दीर्घ, मध्यम, संयुक्त, एकोत्तर तथा क्षुद्रक । सूत्रों की लम्बाई के अनुसार यदि उनकी व्यवस्था की जाय, तो सब सूत्रों का समावेश केवल तीन श्रागमों में ही-दीर्घ, मध्यम और क्षुद्रक में हो सकता था। शेष दो निरर्थक प्रतीत होते हैं । संयुक्त और एकोत्तर में क्षुद्र-सूत्र ही हैं । संयुक्त में विषय के अनुसार सूत्रों का क्रम है, एकोत्तर में धर्मों की संख्या के अनुसार क्रम है। ऐसा मालूम होता है कि ये दो पीछे से जोड़े गये हैं । यह भी मालम होता है कि दीर्घ सूत्रों से पहले छोटे-छोटे सूत्र थे । हमने ऊपर कहा है कि सूत्रपिटक के लिए पहले 'धर्म' शब्द का प्रयोग होता था। धर्म के नौ अंग भी वर्णित हैं । पालि के अनुसार ये इस प्रकार है--सुत्त, गेग्य, वेण्याकरण गाथा, उदान, इतिषुत्तक, जातक, अब्भुत-धम्म तथा केल्ल । जिस प्रकार वेद के अंग हैं, जैन आगम के अंग हैं, इसी प्रकार प्रारम्भ में बौद्धों में भी प्रवचन के अंग थे। हम देखते है कि पहला अंग सूत्र हैं। सूत्र के अतिरिक्त अन्य कई अंग हैं। उस समय 'सूत्र' एक प्रकार की देशना को कहते थे, जिसका श्रारम्भ इन शब्दों से होता था-पाँच स्कन्ध हैं; ये पाँच स्कन्ध कौन है ? पुनः १८ अायतन हैं; ये १८ क्या हैं ? इत्यादि । आकार में ये छोटे होते थे । इनमें धर्मों के नाम और उनके लक्षण होते थे। जिस प्रकार माला में दाने पिरोये जाते हैं, उसी प्रकार ये विविध धर्म एक सूत्र में प्रथित होते थे । इस अवस्था में दीर्घ सूत्र नहीं हो सकते थे। आगे चलकर जब स्त्रों की संख्या में वृद्धि हुई, और उनके कलेवर की वृद्धि हुई, तब सब प्रकार के उपदेशों को 'सूत्र' कहने लगे । इससे ज्ञात होता है कि त्रिपिटक विभाग की अपेक्षा अंगों का विभाग प्राचीन है। अब हम अन्य अंगों का विचार करेंगे। दूसरा 'गेय्य' (संस्कृत 'गेय') है। इसका अर्थ है 'छन्दोबद्ध ग्रन्थ' । 'गेय और गीति एक ही हैं । 'गीति' एक प्रकार का छन्द भी है; यह आर्या नाति का है। हो सकता है कि 'गेय) एक प्रकार का गान हो, जो आर्या जाति में लिखा गया हो । 'गाथा' भी एक प्रकार का श्लोक है, जो गाया जाता है। ऐसा ज्ञात होता है कि गया और गाथा' श्रारम्भ में भिन्न-भिन्न छन्दों के श्लोक थे । हलायुध के छन्दशास्त्र के अनुसार संस्कृत में जो 'पार्यागीति' है, वह प्राकृत में 'स्कन्धक है। संस्कृत में जो 'आर्या' है, वह प्राकृत में 'गाथा' है । ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म के दो अंग-गेय और गाथा--किसी छन्द विशेष के श्लोक नहीं, किन्तु ऐसे श्लोकों के संग्रह है । 'भैय्या आर्या गीति है, गाथा श्रार्या है। पालि का 'वेदल्ल' संस्कृत का 'वैतालीय? मालूम होता है। हलायुध के अनुसार संस्कृत का वंतालीय प्राकृत की 'मागधिका है । जैन श्रागम का एक भाग 'वेतालीय कहलाता है । मज्झिम-निकाय के ४३ और ४४ का शीर्षक 'वेदल्ल' है, किन्तु इनमें श्लोक नहीं, सुत्तन्त हैं। हो सकता है कि यह भाग निकाल दिया गया हो, जैसा कि प्रायः देखा जाता है । 'मागधिका' शब्द द्रव्य है, क्योंकि सबसे पहले सूत्र पालि में लिखे गये । बौद्ध