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गई। निरन्तर अस्वस्थ रहते हुए भी वे इस अन्य के निर्माण में सदैव दत्तचित्त रहे। इसमें प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या लिखने की सूचना भी उन्होंने दी थी और उनका विचार था कि वह पारिभाषिक शब्दकोष भी साथ-ही-साथ प्रकाशित हो। किन्तु नियति के विपरीत विधान ने वैसा न होने दिया। वे लगभग चार-पांच सौ शब्दों का ही भाष्य तैयार कर सके थे कि अचानक साकेतवासी हो गये। अब यह कहना कठिन है कि वह कोष-अन्य कब और कैसे पूरा होकर प्रकाश में ला सकेगा।

महामहोपाध्याय पण्डित गोपीनाथ कविराज ने इस प्रन्थ की गवेषणापूर्ण भमिका तथा माननीय श्री श्रीप्रकाशजी ने प्रस्तावना और डाक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल ने ग्रन्थकारप्रशस्ति लिखकर ग्रन्थ को सुशोभित एवं पाठको को उपकृत करने की जो महती कृपा की है, उसके लिए परिषद् उन विदरों का सादर आभार अंगीकार करती है।

काशी-निवासी पण्डित जगन्नाथ उपाध्याय भी हमारे धन्यवाद-भाजन हैं, जिन्होंने आचार्यजी की प्रेरणा और अनुमति से इस ग्रन्थ के मुद्रणसम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न करने में अनवरत परिश्रम किया तथा प्राचार्यजी के सौंपे हुये काम को बड़ी निष्ठा से निवाहा है। उनकी लिखी हुई ग्रन्थकर्ता-प्रशस्ति भी इसमें प्रकाशित है। उनका सहयोग सदा स्मरणीय रहेगा।

काशी के सहृदय साहित्यसेवी श्रीबैजनाथ सिंह 'विनोद' के भी हम बहुत वृतश है, जिन्होंने परिषद् के साथ प्राचार्यनी का साहित्यिक सम्बन्ध स्थापित कराया, जिसके परिणामस्वरूप प्राचार्यजी का यह अन्तिम सद्ग्रन्थ, परिषद् द्वारा, हिन्दी-संसार की सेवा में उपस्थित किया जा सका। 'विनोद' जी के सौजन्य एवं सत्परामर्श से ही आचार्यजी की संक्षिप्त आत्मकथा इस ग्रन्थ में प्रकाशित हो सकी।

बिहार और हिन्दी के नाते परिषद् के परम हितैषी श्रीगंगाशरण सिंह (संसद सदस्य) ने आचार्यजी की रुग्णावस्था में भी उनसे साग्रह ग्रन्थ तैयार कराने का जो सतत प्रयास किया, उसीके फलस्वरूप यह अमूल्य ग्रन्थ हिन्दी-जगत् को सुलभ हो सका। उन्होंने प्राचार्यजी के निधन के बाद भी इस ग्रन्थ को सांगोपांग प्रकाशित कराने के लिए बड़ी श्रात्मीयता के साथ काशी और मद्रास तक की दौड़ लगाई। आशा है कि वे इस ग्रन्थ को अपने मन के अनुकूल सर्वाङ्गपूर्ण रूप में प्रकाशित देखकर सन्तुष्ट होंगे।

ग्रन्थकार के अभाव का विषाद अनुभव करते हुए भी हमें यही सान्वना मिली है कि भगवान् बुद्ध की पचीस-सौंवी जयन्ती के शुभ अवसर पर यह ग्रन्थ प्रकाशित हो गया। विश्वास है कि बिहार राज्य के शिक्षा विभागान्तर्गत राष्ट्रभाषा-परिषद् की यह श्रद्धांजलि भगवान् तथागत को स्वीकृत होगी।

शिवपूजनसहाय
(परिषद्-मंत्री