पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२१०

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बोद-पर्म-दर्शक प्राप्त करते हैं और वहाँ से फिर नहीं लौटते। अनन्य-भक्ति-द्वारा ही दोनों लोकों की प्राप्ति होती है। दोनों विशुद्ध-सत्त्व से निर्मित है। इसीलिए दोनों शान और आनन्द के वर्धक हैं। दोनों अत्यद्भुत वस्तु है । विष्णु और अमिताभ को प्रभा से समस्त जगत् उद्भासित हो भाता है, जिस प्रकार बौद्धागम में श्रादिशुद्ध शब्द का व्यवहार पाया जाता है उसी प्रकार त्रिपा- द्विभूतिमहानारायणोपनिषत् में 'श्रादि-नारायण' का प्रयोग मिलता है । जिस प्रकार मानुषी- बुद्ध संभोग-काय के निर्माण-काय है, उसी प्रकार राम, कृष्ण श्रादि निशु के अवतार हैं । यह धर्म की स्थापना के लिए संसार में समय-समय पर आते हैं। ईसाई-धर्म में भी ईसा के व्यक्तित्व के बारे में कुछ इसी प्रकार के विचार पाये जाते है । ईसाईयों में भी कुछ मत ऐसे प्रकट हुए, जो यह शिक्षा देते ये कि ईसा का पार्थिव शरीर न था, वह माता के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुए थे, देखने में ही वह मनुष्य मालूम होते थे, यह उनका माया-निर्मित शरीर था। वे उनके लोक में उत्पाद को तथा उनकी मृत्यु को एक सत्य- घटना नहीं मानते थे। इनमें से कुछ ऐसे भी थे जो ईसा के शरीर का अस्तित्व तो मानते थे पर उसको पार्थिव न मानकर दिव्य मानते थे और उनका यह विश्वास था कि ईसा सुख और दुःख के अधीन न थे । इस प्रकार के विचारों को 'डोसेटिज्म' कहते हैं। पारसियों के अवेस्ता में जिन चार स्वर्गों का उल्लेख मिलता है उनमें से एक का नाम 'अनन्त प्रभा वाला है। इससे इलियट महाशय अनुमान करते हैं कि अमिताभ की यूजा बाहर से भारत में अायी । जैनियों का सत्पुर भी सुखावती-लोक से मिलता-जुलता है।। १. तस्मिन् बन्धविनिमुका, प्राप्यन्ते सुसुखं पदम् । यं प्राप्य म निवर्तन्ते तस्मात् मोक्ष उदाहृतः ।। [पापुराण, उत्तरखण्ड, २६ अध्याय ] २. एकेन द्वयमन्त्रण तथा भक्त्या वनन्यया । सद्गम्यं शाश्वतं दिन्यं प्रपये वै सनातनम् ।। [२० अध्याय ] ३. इखियट : हिन्दुइज्म एयर बुरिज्म, मा २, ५. १८-२६ । ४. उपमितभवप्रपन्चा कथा, पृष्ठ ३७७ आदि ।