पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२१२

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बौद-धर्म-दर्शन ने सन् १८३ में प्रकाशित किया । इन सूचीपत्रों के प्रकाशित होने से महायान-धर्म के सिद्धान्तों के सम्बन्ध में तथा उनके विकास के इतिहास के सम्बन्ध में बहुत सी उपयोगी बातें मालूम हुई और विद्वानों का ध्यान बौद्ध-संस्कृत-साहित्य की ओर गया। राजेन्द्रलाल मित्र ने ललित-विस्तर और अष्टसाहसिका-प्रज्ञापारमिताग्रन्थों को 'विक्लिोथिका इण्डिका' में प्रकाशित किया और बेंडल महाशय ने 'शिक्षा-समुच्चय' नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया । फ्रांसीसी विद्वान् सेना ने महावस्तु-अवदान तीन र.एडों में और महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री ने स्वयंभू-पुराण प्रकाशित किया । हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज में बैंडल सन् १८८४ में नेपाल गये। महामहोपाध्याय हरप्रमाद शास्त्री ने १८६७ में नेपाल की यात्रा की; सिलवाँ लेवी भी नेपाल गये और असंग-रचित सूबालंकार की एक प्रति उनके हाथ लगी, जिसको फ्रेंच अनुवाद के साथ उन्होंने प्रकाशित किया। सन् १८८-६ में बेंडल के साथ हरप्रसाद शास्त्री ना फिर नेपाल गये और इस समय शास्त्री जी ने दरबार के पुस्तकालय की पोथियों का सूचीपत्र तैयार किया जो १६०५ में प्रकाशित हुया | इसका दूसरा भाग १६१५ में प्रकाशित हुश्रा । बङ्गाल की एशियाटिक सोसायटी में जो बौद्ध-संस्कृत-साहित्य का संग्रह सन् १८८७ के बाद से हुअा था उसका सूचीपत्र शास्त्री जी ने १६ १६ में प्रकाशित किया। शास्त्रीबी का ख्याल था कि तिब्बत और चीन के पूर्व-भाग में संस्कृत के अनेक ग्रन्थ खोजने से मिल सकते हैं। इधर मध्यएशिया में तुरफ़ान, काशगर, खुतन, तोखारा, और कूचा में, खोज में बहुत से हस्तलिखित ग्रन्थ तथा लेख और चित्र मिले हैं । युनान-च्यांग के यात्रा-विवरण से ज्ञात होता है कि ७ वीं शताब्दी में इस प्रदेश में बौद्धधर्म का प्रचुरता से प्रसार था। यारकन्द और खुतन में महायान-धर्म और उत्तरी-भाग में सर्वां स्तवाद प्रचलित था। लेफ्टिनेंट बाबर को सन् १८६० में भूर्जपत्र पर लिखी हुई एक प्राचीन पोथी मिली थी। डाक्टर होनले ने इस पोथी को पड़ा । यह गुम-लेख में लिखी हुई थी और इसका समय पाँचवीं शताब्दी के लगभग था। इस अन्वेषण का फल यह हुआ कि काश्मीर, लद्दाख और काशगर के पोलिटिकल एजेंटों को ब्रिटिश गवर्नमेंट ने पुरानी पोथियों की खोज का आदेश किया । सन् १८६२ में गुन्युएल-द-रीन' ने खुतन में तीन पोथियां पायी । इनमें एक ग्रन्थ खरोष्ट्री लिपि में है । यह पालि-धम्मपद का प्राकृत-रूपान्तर है । इससे यह सिद्ध हुआ कि प्राकृत में भी बौद्धों के धार्मिक ग्रन्थ लिखे जाते थे। सर पारेल स्टाइन ने खुतन के चारों ओर सन् १९०१ में खोज... करना प्रारम्भ किया। साइन की देखा देखी जर्मनी के विद्वानों ने सन् १६०२ और हुथ । को तुरफान भेजा। पिशेल के उद्योग से जर्मनी में खोज की एक कमेटी बनायी गयी और इस कमेटी की ओर से सन् १६०४ और १६.७ में ल कौक और ग्रुनबेडल की अध्य- क्षता में तुर्किस्तान को मिशन मंजे गये । इन लोगों ने कूचा और तुरफान का कोना कोना ढूँढ़ डाला । सन् १९०६-१६०८ में साइन ने तुनहुअांग में पुस्तकों का एक बहुत बड़ा ग्रिन बैंडल ढेर पाया। . Dutrevil de Rheidns. 2. Le Coq.