पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२१३

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सक्षम् मध्याय इस खोज से कई नयी भाषाओं तथा लिपियों के अस्तित्व का पता चला है । मंगोल, तोखारी, इत्यादि भाषाओं में बौद्ध-ग्रन्थों के अनुवाद मिले हैं, सबसे बड़ी बात यह मालूम हुई है कि संस्कृत में भी एक निकाय था। हम निकाय के कुछ अंश ही प्रात हुए है। यह निकाय सर्वास्तिवाद का निकाय था। उदानवर्ग, एकोत्तरारम, और मध्यमागम के अंश प्राप्त हुए हैं। जो संग्रह इन खोजों से प्राप्त हुआ है उसका अध्ययन किया जा रहा है । श्रनुमान किया जाता है कि कई वर्षों के निरन्तर परिश्रम के उपरान्त ही प्राप्त-ग्रन्थों का पूरा विवरण प्रकाशित हो सकेगा। अभी तक इस निकाय के विनय और धर्मग्रन्थों के अंश ही मिले हैं। यहाँ सर्वास्तिवाद का संक्षेर में विवरण देना श्रावश्यक और उपयोगी प्रतीत होता है। बौद्ध-धर्म के अट्ठारह निकायों में सर्वास्तिवाद की भी गणना है । एक समय इसका सबसे अधिक प्रसार और प्रभाव था। जैसा नाम से ही स्पष्ट है सर्वास्तिवादियों के मत में बाह्य वस्तुजात और श्राध्यामिक वस्तुजात दोनों अस्तित्व है। यह निकाय स्थावरवाद से बहुत पहले पृथक् हो गया था। दीपवंश से मालूम होता है कि वैशाली की धर्म-संगीति के अनन्तर महीणामक स्थविरवाद से और महीशामक से 'सबस्थिवाद और धर्मगुप्त पृथक् हो गये। चीनी यात्री इत्सिंग के विवरण से ज्ञात होता है कि उसके समय में चार प्रधान-निकाय थे, जिनमें से एक आर्य मूल-सस्तिवाद निकाय था। इसके अन्तर्गत मूल सर्वास्तिवाद, धर्म- गुप्त, महीशासक, और काश्यपीय निकाय थे। इससे यह स्पष्ट है कि इन अन्तिम तीन वादों में और मूल-सर्वास्तिवाद में विशेष अन्तर न था। अन्यथा यह सब एक निकाय के विभिन्न अंग न समझे जाते। इस निकाय का इतिहास वास्तव में अशोक के समय की धर्मसंगीति से प्रारंभ होता है । इसी संगीति में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने कथावत्थु का संग्रह किया था। इस ग्रन्थ का उद्देश्य अपने समय के उन वादों का खण्डन करना था जो स्थविरवाद को मान्य नहीं थे । इस ग्रन्थ में 'सबस्थिवाद के विरुद्ध केवल तीन प्रश्न उठाये गये हैं १. क्या एक अर्हत् अर्हत्व से हीन हो सकता है ? २. क्या समस्त वस्तुजात प्रत्यक्ष-ग्राह्य है ? ३, क्या चित्त-सन्तति समाधि है १ इन तीनों प्रश्नों का उत्तर सबस्थिवाद के अनुसार और स्थविरवाद के प्रतिकूल था । अशोक के समय में जब कथावत्थु का संग्रह हुआ तब इस निकाय का विशेष प्रभाव नहीं मालूम पड़ता । ऐसा प्रतीत होता है कि गान्धार और काश्मीर में पहले पहल वैभाषिक नाम से इस निकाय का उत्थान हुश्रा और इन प्रदेशों में इसने विशेष उन्नति प्रात की। 'वैमानिक' शब्द की व्युत्पत्ति विभाषा' शब्द से है। ज्ञान-प्रस्थान १. इ-सिंग रैका श्राफ दी बुद्धिस्ट रिलिजन, इन्ट्रोडक्शन Iपू०१३ । २. विमाषया दिग्बन्ति परन्ति वा वैभाषिकाः । विभाषां वा विवन्ति वैभाषिकाः । विब्जियोथिका बुद्धिका । १०२।