पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२१८

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120 बोर-धर्म-दर्शन यह अन्य लोकोत्तरवादियों का है। इसका प्रमाण यह भी है कि ग्रन्थ में भगवान् बुद्ध को लोकोत्तर बताया गया है। एक जगह कहा है कि बोधिसत्व माता-पिता से उत्पन्न नहीं होते, उनका जन्म उपपादुक है। इतना ही नहीं, तुपित-स्वर्ग से च्युत होने के बाद वे काम- सेवन भी नहीं करते । ऐसी स्थिति में गौतमबुद्ध का पुत्र राहुल है इसका सामञ्जस्य किस प्रकार है । इसके सम्बन्ध में कहा है.---"भो जिनपुत्र १ को हेतुः, कः प्रत्ययः, यं अप्रहाणेहि नशेहि बोधिसत्वाः कामा न प्रतिसेवन्ति, राहुलश्च कथमुत्पन्न इति ?....एवमनुश्रूयते भी धुतधर्मधर ! राजानश्चक्रवर्तिनः श्रीपपादुका वभूवु । तद्यथा...'चक्रवर्तिगणा औपपादुका श्रासन्न तथा राहुलमद इति"। इसी प्रकार भगवान् का शरीर, उनका आहार, उनका चीवर-धारण भी लोकोत्तर माना गया है । महावस्तु में बुद्धानुस्मृति नाम का बुद्धस्तोत्र है, (जिल्द १,पृ. १६३), उसमें तो यहाँ तक कहा गया है कि दीपंकर भगवान् के पास जब बोधिमत्व ने अनिवर्तनचर्या का प्रारंभ किया तभी से वह वीतराग है। दीपंकरमुपादाय वीतरागस्तथागतः। राहुलं पुत्रं दर्शन्ति एषा लोकानुवर्तना ।। इत्यादि । इस प्रकार महावस्तु में भगवान् को लोकोत्तर माना गया है। हीनयान से महायान की ओर यह संक्रमणावस्था है। हीनयान में समाधि का महत्व था। महावस्तु में भक्ति प्रधान स्थान लेती है । स्तूप की परिक्रमा करने से अथवा पुष्पोपहार से भगवान् की श्राराधना करने से अमित पुण्य प्राप्त होता है । एक स्थल पर कहा गया है कि बुद्ध की उपासना से ही निर्वाण की प्राप्ति होती है। हीनयान के प्राचीन पालिग्रन्थों में बोधिसत्व की दशभूमियों का उल्लेख कहीं नहीं मिलता । 'महावस्तु में ही इसका प्रथम विस्तृत वर्णन हम पाते हैं। बोधिसत्व की दश भूमियाँ ये हैं:-दुरारोहा, बद्धमाना, पुष्पमण्डिता, रुचिरा, चित्तविस्तार, रूपवती, दुर्जया, बन्मनिदेश, यौवराज और अभिषेक । बोधिसत्य ने इन भूमियों की प्राप्ति किस प्रकार और किन बुद्धों के सानिध्य में की, इसका विस्तृत वर्णन महावस्तु में मिलता है । 'दश- भूमिशास्त्र में जिन भूमियों का उल्लेख है, वे इनसे भिन्न हैं। दशभूमियों का सिद्धान्त पहले पहल 'महावस्तु में ही उपदिष्ट है और उसी को आगे चलकर महायान-ग्रन्थों में सुपल्लवित किया गया। बुद्ध का जीवन-चरित ही महावस्तु का मुख्य उद्देश्य है । इमीलिए, उसे महावस्तु-अवदान कहा गया है। किन्तु 'ललित-विस्तर में जीवन चरित का जो व्यवस्थित रूप हम पाते हैं वह 'महावस्तु' में नहीं है । चातक, सूत्र, कया और विनय ऐसे कई अंगों का यहां मिश्रण है । शाक्य- वंश और कोलियवंश के उद्भव की कथा पालिग्रन्थों के वर्णन से मिलती है । बुद्ध के जन्ग की कथा पालि 'निदान-कथा' और संस्कृत 'ललित-विस्तर में काफी मिलती है। भाषा की दृष्टि से 'महावस्तु' का पद्यमय-भाग ललित-विस्तर से प्राचीन है। महावस्तु में कई भाग ऐसे हैं जो पालि-निकायों से मिलते हैं। सुत्तनिपात्त के पन्धज्जासत्त, पधानसुत्त, खगक्सिाण-