पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद्ध-धर्म दर्शन भी पड़ा, क्योंकि-भुंजानोपि प्रभास्वरः, सुप्तोपि, कुटी ततोपि तदेवेति भुसुकु समाधिसमापनत्वात् भुसुकुनामख्याति संघेऽपि । नालन्दा के युवकों ने उनके ज्ञान की परीक्षा करने में उत्सुकता दिखाई । नालन्दा की प्रथा थी कि प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्रापक्ष में धर्म-कथा होती थी। उन्होंने उनको इसके लिए, बाध्य किया । नालन्दा-विहार के उत्तर-पूर्व दिशा में एक बड़ी धर्मशाला थी। उस धर्मशाला में सब पंडित एकत्र हुए. और शान्तिदेव सिंहासन पर बैठाये गये। उसने तत्काल पूछा- किमार्धं पठामि अथार्प वा, तत्र ऋधिः परमार्थज्ञानवान् । ऋ५ गतौ-इत्यत्र श्रोणादिकः कि । ऋषिणा जिनेन प्रोक्तं वा । ननु प्रज्ञापारमितादौ मुभूत्यादिदेशितं कथमा इत्यत्रोच्यते युवराजार्यमैत्रेयेण। यदर्थवद् धर्मपदोपसंहितं त्रिधातुमंजेशनिबर्हणं वचः । भवे भवेच्छान्त्यनुशंसदर्शकं तद्वत् किमार्य विपरीतमन्यथा ॥ तदाकृष्टं श्रार्याोरा सुभून्यादिदेशना तु भगवदधिष्ठानादित्यदोषः । पंडित लोग अाश्चर्यान्वित हुए और उनसे अर्थाः ग्रन्थ का पाठ सुनाने को कहा । उन्होंने विचारा कि स्वरचित तीन ग्रन्थों में से किसका पाठ सुनायें। उन्होंने वोधिचर्यावतार को पसन्द किया और पड़ने लगे-"सुगतान् ससुतान् सधर्मकायान् ।' इत्यादि । लेकिन जब वह- यदा न भावो नाभावो मतेः सतिष्ठते पुरः। तदान्यगत्यभावेन निरालम्बः प्रशाम्यति ।। पट्टने लगे, तब भगवान् सन्मुग्न प्रादुर्भत हुए, और शान्देिव को स्वर्ग ले गये। पंडित अाश्चर्यान्विन हुए। उनकी पदु-कुटी (म्टूडेन्ट्स कॉटेज ) हूँढी । वहाँ से तीनों ग्रन्थों को ले उन्हें प्रकाशित किया । यह वृत्तान्त इन तीन तालपत्रों से प्राप्त होता है । उनके ग्रन्थों से मालूम होता है कि वह माध्यमिक-दर्शन के अनुयायी थे। वेंडल का कहना है कि शान्तिदेव के ग्रन्थों में तन्त्र का प्रभाव पाया जाता है । कादिये कृत कैटालाग से पाया जाता है कि शान्तिदेव 'श्रीगुह्यसमाजमहायोगतन्त्रवलिविधि.' नामक तान्त्रिक ग्रन्थ के रचयिता थे । दरबार लाइब्रेरी, नेपाल में चर्या चर्यविनिश्चय नामक तालपत्र से मालूम होता है कि भुसुकु ने वज्रयान के कई ग्रन्थ लिखे, बंगाली में भुमुकु के कई गान बताए जाते हैं। एक गान में लिखा कि वह बंगाली थे-- ४८-गमल्लारी-भुमुकुपादाना- वानराव पाट्टी पॐश्रा खाले वाहिउ। श्रदय बंगाले लेश लुडिउ ॥ ६ ॥ श्राजि भुसुकु बंगाली भइलि- एने अधरिणी चण्डालि लेलि ॥६॥