पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२६३

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अहम मायाय प्रज्ञापारमिताम्भोधिपरिमथनातमतपरितोक्तिसिद्धाचार्य भुसुकुपादो बंगालिका व्याजेन तमेवार्थ प्रतिपादयति । प्रशारविन्दकुहरहदे सद्गुरुचरणोपायेन प्रवेशितं तत्रानन्दादि शब्दो ही- त्यादि अक्षरसुखाद्वय बगालेन वाहित ति अभिनय कृतं । यह नगर बंगाल में था। बंगाल मध्यप्रदेश के श्रागे है । शान्तिदेव तराई के जंगलों में गये। उनका काल ६४८ ईस्वी से ८१६-८३८ ईस्वी है, जब कि यह ग्रन्थ तिब्बती भाषा में अनूदित हुना। भुसुकु द्वारा निर्मित बताये जाने वाले गीत भी इसी समय के होंगे। यद्यपि ये बौद्धधर्म के महाजिया सम्प्रदाय के गीन हैं, जो कि बज्रयान की एक शाखा है; अथवा उसी का पर्याय है । नेपाल को दबार लाइोरी में बौधिन नागनुशंम नामका एक ग्रन्थ है जो कि बोधिचर्यावतार ही है, केवल उसमें कुछ पद जोड़ दिये गये हैं। भसुकु ने एक दोहे में अपना नाम 'केट लिखा है- राउत भाइ कट भुसुकु भणइ कट सधला अइस सहाव । ज इतो मूढा अदमी भान्ति पुच्छन सदगुरूपाव । (हरप्रमाद शाम्बा) इस सम्बन्ध में 'दोहा' में कुछ और भी कहना चाहते हैं। वासिल- जीन का ख्याल है कि अपभ्रंश में बौद्ध ग्रन्थ थे । नागनाथ का भी यही मत है। नेपाल में मन् १८६८-६६ ई० मे वेडल और हरप्रमाद शास्त्री मुभाषितसंग्रह नामक ग्रन्थ मिला था--वेंडल ने इसे प्रकाशित किया है। इमर्म अपभ्रश के कुछ उद्धरण है । मन् १९०७ म हरप्रसाद शास्त्री ने अपभ्रंश के कई अन्य नेपाल में पाये । इस में प्राचीन बगाली कहता हूँ । इसमें मन्देह नहीं कि पूर्व भारत में ७ वी. वों और हवी शताब्दी में यही भाषा बोली जाती थी। दशम अध्याय में हम शान्तिदेव के आधार पर बोधिचर्या एवं उनके दर्शन का विस्तार देंगे। शान्तरक्षित-- वीं शताब्दी में शान्तरक्षिा ने तत्त्वमंग्रह नाग के ग्रन्थ की रचना की। यह अन्य कमलशाल की टीका के साथ बरोदा से प्रकाशित हुआ है । इस ग्रन्थ में तंत्रिक- योगाचार की दृष्टि से बौद्ध तथा अन्य दार्शनिक मतवादों का खए इन किया गया है । शान्तरक्षित नालन्दा से तिब्बत गये थे । वहाँ उन्होंने सामये नाम के संघाराम की स्थापना ७४६ ई. में की थी। इनकी मृत्यु तिब्बत में ७६२ ई० में हुई।