पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३३८

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प्रयोदश अध्याय कर्म-बाद जीवलोक और भाजनलोक (विश्व ) की विचित्रता ईश्वर कृत नहीं है । कोई ईश्वर नहीं है, जिसने बुद्धिपूर्वक इसकी रचना की हो। लोक वैचित्र्य कर्मज है । यह सल्वों के कर्म से उत्पन्न होता है। कर्म दो प्रकार के हैं-चेतना और चेतयित्वा । चेतना मानस कर्म है । चेतना से जो उत्पन्न होता है, अर्थात् चेतयित्वा-कर्म चेतनाकृत है। चेतयित्वा कर्म दो है कायिक और वाचिक । इन तीन प्रकार के कर्मों की मिद्धि श्राश्रय, स्वभाव और समुत्थान इन तीन कारणों से होती है । यदि हम प्राश्रय का विचार करते हैं, तो एक ही कर्म टहरता है, क्योंकि सब कर्म काय पर आश्रित हैं। यदि हम स्वभाव का विचार करते हैं, तो वाक्-कर्म ही एक कर्म है, अन्य दो का कर्मत्य नहीं है, क्योंकि काय, वाक् और मन इन तीन में से केवल वाक् स्वभावतः कर्म है । यदि हम समुन्थान का विचार करते हैं, तो केवल मनस् कर्म है, क्योंकि सब कर्मों का समुत्थान (श्रारम्भ ) मन से है। सब कर्म 'उपचितः (संचितकर्म, क्रियमाणानि कर्माणि, प्रारब्धफलानि कर्माणि) नहीं होते, अर्थात् फल देना प्रारंभ नहीं करते । 'कृत' कर्म और 'उपचित कर्म में भेद है। 'उपचित कर्म की व्याख्या अभिधर्मकोश [ ४,१२० ] में दी है । यही कर्म उपचित होता है, जो स्वेच्छा से या बुद्धिपूर्वक ( संचिन्य) किया जाता है । अबुद्धिपूर्वक कर्म, बुद्धिपूर्वक सहसाकृत कर्म, या वह कर्म नो भ्रान्तिवश किया जाता है, उपन्नित नहीं होता। भाण्याक्षेप से अभ्यासवश जो मृपावाद का अनुष्ठान होता है, वह अकुशल-कर्म है, किन्तु यह उपचित नहीं होता । जो भ्रान्तिवश अपने पिता का वध करता है, वह उपनित कर्म नहीं करता । जो कर्म असमाप्त रहता है, वह उपचित नहीं होता। कोई एक दुश्चरित से दुर्गति को प्राप्त होता है, कोई दो से, कोई तीन से कोई एक कर्मपथ से, कोई दो से, • कोई दश से। यदि जिस प्रमाण से दुर्गति की प्राप्ति होती है, वह प्रमाण असमाप्त रहता है, तो 'कृत कर्म 'उपचिता नहीं होता; समाप्त होने पर ही उपनित होता है । कर्म करने के उपरान्त यदि अनुताप होता है, तो कृत कर्म 'उपनिता नहीं होता। पाय के प्राविष्कृत करने से पाप की मात्रा का तनुत्व या परिक्षय होता है। पाप कर्म का प्रतिपक्ष होने से कृत कर्म 'उपचित' नहीं होता। पाप-विरति का व्रत लेने मे, शुभ का अभ्यास करने से, श्राश्रय-बल से, अर्थात् बुद्धादि की शरण में जाने से, पाप कर्म 'उपचित नहीं होता। जत्र कर्म अशुभ है, और उसका अकुशल परिवार है, तभी कर्म 'उपचित होता है । जो कर्म विपाक-दान में नियत है, वह उपचित होता है; दो अनियत है, वह 'उपचित' नहीं