पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४०३

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पंचदश अध्याय है, क्योंकि संस्कृत से निःसरण, सर्व संस्कृत का निर्वाण श्रावश्यक है। संस्कृत सवस्तुक हैं, क्योंकि यह सहेतुक हैं। सासव संस्कृत 'उपादान स्कन्धा कहलाते हैं। उपादान क्लेश ह । उपादान स्कन्ध-मंज्ञा इसलिए है, क्योंकि यह क्लेशों से संभूत हैं। अथवा यह अंश विधेय हैं। इन्हें 'सरण' भी कहते हैं, क्योंकि वंश वहाँ प्रतिष्टालाभ करते हैं। यह 'दुःख', 'समुदया, 'लोक', 'दृष्टिस्थान', 'भव भी है। पार्यों के प्रतिकूल होने के कारण यह दुःख हैं। 'दुःख शब्द लोक में अनुभूत दुःश्व-वेदनामात्र नहीं है । द ख उपादान-स्कन्ध है। न्यायभाष्य में दुःख का अर्थ 'जन्म' है [तेन दुःखेन जन्मना अत्यन्त वित्तिरपवर्ग:- वात्स्यायनभाष्य, ११।२२] । वाचम्पतिमिश्र टीका में कहते हैं- "दुःवशब्देन सर्वे शरीरादय उच्यन्ते", अर्थात् 'दुःख' शब्द से सर्व शरीरादि उक्त हैं। वे पुनः कहते हैं कि यह भ्रम नहीं होना चाहिये कि यह मुख्य दुःख है ( मुख्यमेव दुःमिति भ्रमो मा भूत् )। उसी प्रकार जयन्त कहते हैं-"न च मुख्यमेव दुःखं बाधनस्वभावमरमृश्यते, किन्तु तत्साधनं तदनुसक्त च सर्वमेव [ जयन्त की न्यायमंबरी, पृ. ५०७ ] । इसी प्रकार अभिधर्मकोश [६।३ ] में कहा है कि पंच उपा- दान-स्कन्ध दुःख कहलाते है । वेदना एक देश ही दु.ख-स्वभाव नहीं है | विदुःखता के कारण सब मारय मंस्कृत-धर्म अविशेषतः दुःव है । 'सासव-संस्कृत' को समुदय भी कहते हैं, क्योंकि दुःख के यह हेतुभूत हैं। ये लोक है, क्योंकि विनाश-प्रवृत्त हैं। ये 'दृष्टिस्थान है, क्योंकि दृष्टियां यहाँ अवस्थान और प्रतिष्ठालाम करता है। संस्कृत धर्म स्कन्ध -हमने कहा है कि संस्कृत-धर्म रूपादि स्कन्ध-पंचक है। 'स्कन्ध' का अर्थ 'शशि' है । स्कन्धों में असंस्कृत संगृहीत नहीं हैं। स्कन्ध ये हैं:--रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान । रूप-सन्ध में पांच इन्द्रियों, पांच अर्थ या विषय, और अविज्ञप्ति संग्रहीत है । पाँच इन्द्रियाँ ये हैं:-चन्द्रिय, श्रोत्र, प्राण, जिह्वा, काय । पाँच अर्ब जो इन्द्रिय के विषय हैं, इस प्रकार हैं:-रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पष्टव्य । चक्षुरादि इन्द्रिय :न अर्यों के विज्ञान के अाश्रय है । ये रूप-प्रसाद और अतीन्द्रिय हैं । अब हम रूपायतन से प्रारंभ कर पाँच अर्थों का विचार करते हैं। रूप एक प्रकार से द्विविध है, दूसरे प्रकार से बीस प्रकार के हैं । रूप वर्ण और संस्थान है । वर्ण चतुर्विध है:- नील, लोहित, पीत, अवदात । अन्य वर्ण वर्ग-चतुष्टय के मंद हैं । संस्थान अष्टविध है:- दीर्घ, हस्त, वृत्त, परिमण्डल, उन्नत, अवनत, शात ( सभ ) और विशात ( विषम )। इस प्रकार रूप के बीस प्रकार हैं- मूल जाति के चार वर्ण; पाठ संस्थान, श्राट अन्य वर्ण-अभ्र, धूम, रज, मटिका, छाया, पातप, आलोक, अपकार । तम-संस्थान के बिना वर्ण रूप हो सकता है, यथा नीलादि । वर्ण के बिना संस्थान रूप हो सकता है, यथा दीर्घ हस्वादि का बद्द प्रदेश जो काय-विज्ञप्ति-स्वभाव है । वर्ण-संस्थान उभयात्मक रूप है । अन्य आचार्यों का मत है कि केवल शातप और बालोक वर्णमात्र है, क्योंकि नीलादि का परिच्छेद दीर्घ हस्त्रादि के आकार में दिखाई देता है । सौत्रान्तिक कहते हैं कि एक द्रव्य