पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४१०

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३२२ बौदधर्म-दर्शन स्वीकार नहीं करते, वे कहते है कि इस संदर्भ में 'वस्तु' 'हेतु' के अर्थ में है । यद्यपि असंस्कृत द्रव्य है, तथापि वह नित्य निष्क्रिय है। अत: कोई हेतु नहीं है, जो उनका उत्पाद करता है; और कोई फल नहीं है, जिसका यह उत्पाद करते हैं । पाल्मा और ईश्वर का प्रतिवेध धर्मों के इस विभाग में आत्मा, पुरुष, प्रकृति को स्थान नहीं है । अात्मा प्रशप्तिमात्र है। जिस प्रकार 'रथ' नाम का कोई स्वतंत्र पदार्थ नहीं है, वह शब्दमात्र है; परमार्थ में अंग- संभार है । उसी प्रकार अात्मा, सन्च, जीव, पुद्गल, नामरूपमात्र ( स्कन्धयंचक) है। यह कोई अविपरिणामी शाश्वत पदार्थ नहीं है । रूप भी केवल विज्ञान का विषय है। वैशेपिकों के परमाणु के तुल्य द्रव्य नहीं है। वैभाषिक सस्वभाववादी हैं,बहुधर्मवादी हैं; किन्तु कोई शाश्वत पदार्थ नहीं मानते । उनके द्रव्य सत् है, किन्तु क्षणिक है । वे चैत्त और रूपी धर्म हैं। वे किसी मूल कारण की व्यवस्था नहीं करते। वे नहीं मानते कि ईश्वर, महादेव या वासुदेव, पुरुष, प्रधानादिक एक कारण से सर्व जगत् की प्रवृत्ति होती है। यदि भावों की उत्पत्ति एक कारण से होती तो सर्व जगत् की उत्पत्ति युगपत् होती; किन्तु हम देखते हैं कि भावों का क्रम संभव । ईश्वरवादी कहता है कि यह क्रम-भेद ईश्वर की इच्छारश है.--"यह इम समय उत्पन्न हो, यह इस समय निरुद्ध हो; यह पश्चात् उत्पन्न और निरुद्ध हो ।” वैभाषिक उत्तर देता है कि यदि ऐसा है, तो भावों की उत्पत्ति एक कारण से नहीं होती; क्योंकि छन्द-भेद है । ईश्वरवादी पुनः कहता है कि ईश्वर स्वप्रीति के लिए जगत् की उत्पत्ति करता है। यदि ईश्वर नरकादि में प्रजा की मुष्टि कर बहु ईलियों से उन्हें उपद्रुत होते देख कर प्रसन्न होता है, तो उसको नमस्कार है । सत्य ही यह लौकिक श्लोक सुगीत हैं :-"उसे रुद्र कहते हैं, क्योंकि वह दहन करता है, वह उग्र, तीक्ष्ण, प्रतापवान् है। वह मांस, शोणित, मज्जा, खाने वाला है । कदाचित् प्रत्यक्ष हेतुओं के निषेध के परिहार के लिए, और ईश्वर की अप्रत्यक्ष वर्त- मान क्रिया की प्रतिज्ञा के परिहार के लिए, ईश्वरवादी कहेगा कि अादिसर्ग ईश्वर-हेतुक है; किन्तु आदिसर्ग का केवल ईश्वर एक कारण है, वह अन्य कारणों की अपेक्षा नहीं करता । अतः ईश्वरवत् उनके भी अनादित्व का प्रसंग होगा। ईश्वरवादी इसका प्रतिषेध करता है, अतः कोई धर्म एक कारण मे उसन्न नहीं होता। प्रात्मा का प्रतिषेध, अभिधर्मकोश के न कोशस्थान में किया गया है। उसका सारांश हम १२ व अध्याय में दे चुके हैं। पहां परमाणुवाद का विचार करना आवश्यक है। परमाणुवाद स्थविरवाद स्थविरवाद में परमाणु का उल्लेख नहीं है। ज्ञात होता है कि सर्वास्तिवा- दियों ने सबसे पहले परमाणुवाद का उल्लेख किया है । बुद्धघोष के 'विशुद्धिमम्गो और अस्थ-