पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४२०

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३३२ बौदादांव मन-मद्रिय, सुख, सौमनस्य, और उपेक्षा त्रिविध हैं। दौर्मनस्य दर्शन-हेय और भावना- हेय है । पाँच विज्ञानेन्द्रिय, स्त्री-पुरुषेन्द्रिय, जीवितेन्द्रिय और दुःखेन्द्रिय केवल भावना-हेय हैं। श्रद्धादि पंचक अनासव हो सकते हैं। अतः अहेय हो सकते हैं। अन्य तीन अहेय हैं, क्योंकि आदीवन से विमुक्त धर्म प्रहातव्य नहीं है । श्रामबयोपयोगी इन्द्रिया-श्रामण्य फल के लाभ में कितनी इन्द्रियां अावश्यक है दो अन्त्य फलों की प्राप्ति नौ इन्द्रियों से होती है। मध्य के दो फलों की प्राप्ति सात, पाठ या नौ से होती है। अन्त्य फल सोतापत्ति और अहफल है, क्योंकि यह दो फल प्रथम और अन्तिम हैं। मध्य मं सकृदागामी और अनागाभी फल होते हैं, क्योंकि यह दो फल प्रथम और अन्तिम के मध्य में होते हैं। मन-इन्द्रिय, श्रद्धादिपंचक, प्रथम दो अनासब इन्द्रिय--अनज्ञात, आशा, प्रथम फल की प्राप्ति होती है। अनाशात यानन्तर्य-मार्ग है । अाज विमुक्ति-मार्ग है। इन दो से भी स्रोतापत्ति फल की प्राप्ति होती हैं, क्योंकि प्रथम देश-विसंयोग की प्राप्ति का प्रावाहक है, और द्वितीय इस प्राप्ति का संनिश्रय, आधार है। अहंत्फल का लाभ मन-इन्द्रिय, सौमनस्य या सुख या उपेक्षा, श्रद्धादि आजेन्द्रिय और श्राशाताचीन्द्रिय से होता है । सकृदागामि-फल की प्राप्ति या तो अानुपूर्वक मात इन्द्रियों से-- (मन, उपेक्षा, श्रद्धादि पाँच ) करता है, या तो भूयो वीतराग अाठ इन्द्रियों से ( पूर्वोक्त सात, श्रा) प्राप्त करता है । अानुपूर्वक अनागम्मी-फल की प्राप्ति सात या आठ इन्द्रियों से करता है, और वीतराग नौ इन्द्रियों से करता है । इन्द्रियों का सह समन्बागम-किस किस इन्द्रिय से समन्त्रागत पुद्गल कितने अन्य इन्द्रियों से समन्वागत होता है ? नो मन-इन्द्रिय या जीवितेन्द्रिय या उपेचेन्द्रिय से युक्त होता है, वह अवश्य अन्य दो से युक्त होता है । जब इनमें से का अभाव होता है, तो अन्य दो का भी अभाव होता है । इनका, एक दूसर के बिना, समन्वागम नहीं होता । अन्य इन्द्रियों का समन्यागम नियत नहीं है। जो इन तीन इन्द्रियों से अन्वित होता है, यह अन्य से युक्त या श्रयुक्त हो सकता है। बो सुखेन्द्रिय या कायेन्द्रिय से समन्यागत है, वह जीवित, मन, उपेक्षा से भी समन्वागत होता है । जो चक्षुरादि इन्द्रियों में से किसी एक से समन्वागत होता है, वह अवश्य- मेव बीवित, मन, उपेक्षा कार्य से समन्वागत होता है । बो सौमनस्येन्द्रिय से समन्वागत होता है, वह जीवितेन्द्रिय, मन', या सुख से भी समन्वागत होता है । जो दुःखेन्द्रिय से समन्वागत है, वह अवश्य सात इन्द्रियों से समन्वागत होता है। जीवित, मन, काय और वेदनेन्द्रिय । जो स्त्रीन्द्रियादि, अर्थात् स्त्री, पुरुष, दौमनस्य', अदादि में से किसी एक से समन्वागत होता है, वह अवश्य आठ इन्द्रियों से समन्वागत होता है।