पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४२६

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को स्तन्ध करते है। काय-चित्त कर्मण्यता अवशेष नीवरणादि के प्रतिपक्ष है, जो काय-चित्त को अकर्मण्य बनाते हैं। काय-चित्त-प्रगुणता काय-चित्त की अग्लानि है । यह श्राद्धयादि की प्रतिपक्ष है । काय-चित्त-जुकता, माया-शाठ्यादि की प्रतिपक्ष है। इन दो तीन सूचियों की तुलना करने से पता चलता है कि स्थविरवादियों की सूची में करुणा-मुदिता अविहिसा का स्थान लेते हैं । काय-चित्त की लधुता, मृदुता, कर्मण्यता, प्रगुणता, जुकता सर्वास्तिवाद और विज्ञानवाद की सूचियों में नहीं है । पुनः स्थविरवाद की सूची में अप्रमाद नहीं है । अभिधम्मस्थसंगहो की सूची में प्रश्शेन्द्रिय है । विशुद्धिममो में अमोह है। दोनों एक हैं। बरोरा-महाभूमिक स्थविरवादियों के अनुसार चौदह अकुशल चैतसिक हैं-मोह, अाहीक्य, अनपत्राप्य, औद्धत्य (चित्त का उद्धृतभाव ), लोभ, दृष्टि ( या मिथ्या-दृष्टि , विसुद्धिमग्गो का पाठ ), मान (-अहंकार ममकार), द्वेष (प्रतिष ), ईर्ष्या (असूया ), मात्सर्य (अपनी सम्पत्ति का निगहन ), कोकृत्य (कृताकृतानुशोचन ), त्यान (= अनुरसाह), मिद्ध ( - अकर्मण्यता) और विचिकित्सा। विसुद्धिमग्गो के अनुसार नियत तेरह हैं। येवापनक चार है | तेरह नियत-चैतसिकों में स्पर्श, चेतना, वितर्क, विचार, प्रीति, वीर्य, जीवित, समाधि भी हैं। ये कुशल-चैतसिक में भी हैं। विशुद्धिममो में वेदना और संशा, पृथक् स्कन्ध गिनाये जाने के कारण, संस्कार- स्कन्ध में पुनः संगृहीत नहीं है। अकुशल के चार येवापनक ये हैं-छन्द, अधिमोक्ष, औद्धत्य, मनसिकार । इस सूची में कुशल येवापनक के तत्रमध्यस्थता के स्थान में औद्धत्य है। तदनन्तर त्यान-मिद्ध आदि भी हैं। सर्वास्तिवाद के अनुसार महाक्लेश-भूमिक चैत्त, बो सर्व क्लिष्ट-चित्त में पाए जाते हैं, छ: है-मोह, प्रमाद, कौसीद्य, श्राश्रय, स्पान और प्रौद्धत्य । ये एकान्ततः क्लिष्ट-चित्त में होते हैं। मोह, अविद्या अशान है। प्रमाद कुशल धर्मों का अप्रतिलम्भ और अनिषेवण है। कौसीय वीर्य का विपक्ष है। श्राश्रद्धय श्रद्धा का विपक्ष है । ल्यान कर्मण्यता का विपक्ष है। श्रौदय चित्त का अन्युपशम है । मूल अभिधर्म में है कि नेश-महाभूमिक दश है। किन्तु उसमें ज्यान पठित नहीं है। यह दश इस प्रकार है :--आश्रद्धय, कौसीद्य, मुधितस्मृतिता, विक्षेप, अविद्या, असंप्रजन्य, अयोनिसोमनसिकार, मिथ्याधिमोक्ष अर्थात् लि-अधिमोक्ष, औद्धत्य और प्रमाद । वस्तुत: लिष्ट स्मृति ही मुषितस्मृतिता है । जिष्ट समाधि ही विक्षेप है । शिष्ट प्रणा ही प्रसंप्रवन्य है । शिष्ट मनसिकार ही अयोनिसोमनसिकार है। किष्ट अघिमोक्ष ही मिष्याधिमोच है। ये पांच महाभूमिकों की सूची में पूर्व निर्दिष्ट हो चुके हैं। उनको पुनः केश-महामूमिको