पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४२७

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पंचदश अध्याय की सूची में परिगणित करने का स्थान नहीं है। यथा-कुशल-मूल अमोह यद्यपि कुशल- महाभूमिक है, तथापि प्रशा-स्वभाव होने से यह महाभूमिक व्यवस्थापित होता है। कुशल- महाभूमिक के रूप में उसका अवधारण नहीं होता। यहां प्रश्न है कि क्या महाभूमिक क्लेश-महाभूमिक भी हैं। चार कोटि हैं:- १. वेदना, संज्ञा, चेतना, स्पर्श और छन्द केवल महाभूमिक हैं । २. श्राश्रद्धध, कौसीग्र, अविद्या, औद्धत्य और प्रमाद केवल क्लेश-महाभूमिक हैं। ३. स्मृति, समाधि, प्रहा, मनसिकार और अधिमोक्ष महाभूमिक और क्लेश-महाभूमिक दोनों है। ४. इन श्राकारों को स्थापित कर अन्य धर्म ( कुशल-महाभूमिकादि ) न महाभूमिक है, न क्लेश-महाभूमिक हैं। श्राभिधार्मिक कहते है कि स्थान का उल्लेख होना चाहिये था, किन्तु यह इसलिए पटित नहीं है, क्योंकि यह समाधि के अनुगुण है। वस्तुतः उनका कहना है कि स्त्यान-चरित पुद्गल श्रौद्धत्य-चरित पुद्गल की अपेक्षा समाधि का संमुखीभाव क्षिप्रतर करता है। प्राचार्य वसुबन्धु का कहना है कि स्त्यान और औद्धत्य जो क्लिष्ट धर्म है, समाधि नामक शुक्र धर्म के परिपन्थी हैं। दोमकुशव-महाभूमिक बाह्रीक्य और अनपत्राम्य सदा एकान्ततः अकुशल चित्त में पाए जाते हैं। परीच-स्खेश-भूमिक क्रोध, उपनाह, शाठ्य, ईर्ष्या, प्रदास, म्रक्ष, मत्सर, माया, मद, विहिंसा श्रादि परीत्त हैं। परीत्त (अल्पक ) क्लेश रागादि से असंप्रयुक्त विद्यामात्र है। ये भावनाहेय मनोभूमिक अविद्यामात्र से ही संप्रयुक्त होते हैं। अनुशय-कोशस्थान में इनका निर्देश उपक्लेशों में किया गया है। ये उपक्लेश भावनाहेय हैं, दर्शनहेय नहीं हैं। ये मनोभूमिक हैं। पंच विज्ञान- काय से इनका संप्रयोग नहीं होता। ये सब अविद्या से संप्रयुक्त होते हैं। इनकी पृथक् पृथक् उत्पत्ति हो सकती है। विज्ञामवाव से तुलना-विज्ञानवाद के अनुसार चैत्तों के अवस्था प्रकार-विशेष मूल लेश और उपक्कैशों की सूची भिन्न है । भूल क्लोश ये है :-राग, द्वेप, मोह, मान, विचिकित्सा, कुदृष्टि। यह सूची सर्वास्ति- वाद की सूची से सर्वथा भिन्न है । दोनों में केवल 'मोह' सामान्य है। शेष पाँच सर्वास्तिवादी 'क्लेश' विज्ञानवाद के उपक्लेश की सूची में संगृहीत हैं। उपालेगा ये हैं :-क्रोध, उपनाह नक्ष, प्रदाश, ईर्ष्या, मात्सर्य, माया, शाश्य, मद, विहिंसा, अही, अत्रपा, त्यान, औद्धत्य, श्राश्रय, कौसीय, प्रमाद, मुषिता-स्मृति, विप, असंप्रखत्य।