पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१ चैस होते हैं, पब यह कुशल और कोकृत्य विमुक्त होता है। २३ के स्थान में २४ चित होते हैं, जब यह कुशल और कोकृत्य सहगत होता है.. ...."इत्यादि। सात प्रथम ध्यान में-१. प्रतिघ, २. शाश्य, माया मद को वर्जित कर कोषादि, १. पाहीक्य और अनपत्राप्य यह दो अकुशल महाभूमिक, ४. कोकृत्य, क्योंकि दौर्मनस्य का वही अमाव होता है, तथा ५. मिद्ध, क्योंकि कवडीकार पाहार का वहां अभाव होता है, नहीं हो। कामघातु के अन्य सर्व चैत्त प्रथम ध्यान में होते हैं। ध्यानान्तर में वितर्क भी नहीं होता । द्वितीय ध्यान में और उससे ऊर्ध्व, यावत् प्रारूप्य. धातु में विचार, शाठ्य, और माया भी नहीं होते। मद धातुक है। सूत्र अनुसार साव्य और माया ब्रमलोकपर्यन्त होते हैं, और उन लोकों से ऊर्ध्व नहीं होते, वहां के सत्चों का पर्षत-संबध होता है। विज्ञानवाद-चित्त का श्राश्रय लेकर चैत्त उत्पन्न होते हैं। ये चित्त से संप्रयुक्त होते हैं, चित्त से प्रतिबद्ध होते हैं । यथा--जो श्रात्मा पर श्राश्रित होता है, उसे श्रात्मीय कहते हैं। चित बालबन के केवल सामान्य लक्षणों का प्रहण करता है । चैत्त श्रालंबन के विशेष लक्षणों को भी अहस करते हैं। चित्त अर्थमात्रग्राही है, और चैत विशेषावस्था का ग्रहण चैत चित्त के सहकारी होते हैं। विज्ञान सकल श्रालंबन को एक साथ ग्रहण करता है। प्रत्येक चैत्त उसको ग्रहण करता है, जिसे विधान ग्रहण करता है; और साथ साथ एक विशेष लवण भी ग्रहण करता है, जिसकी उपलब्धि उसका विशेष है । यथा--विशान वस्तु का सामान्य लक्ष्य जानता है (विजानाति ), मनस्कार इस लक्षण को बानता है, और उस लचय को जानता है, जो विशन से ( या चित्त-अघिपति से ) विशात नहीं है। स्पर्श-बालंबन के मनोशादि लक्षणों को जानता है । वेदना, श्राहादकादि लक्षयों को खानती है। संचा-उन लक्षणों को जानती है, जो प्राप्ति-हेतु है। चेतना-सम्यग-हेतु, मिथ्या-हेतु, उभय विरुद्ध ( जो कर्म-हेतु हैं ) लक्षणों को जानती है। इसीलिए मनस्कार-स्पर्शादि चैत धर्म कहलाते हैं। मध्यान्तविभाग में कहा है:-छन्द अभिप्रेत वस्तु का भी लक्षण बानता है, अधिमोक्ष निश्चित वस्तु का, स्मृति अनुभूत वस्तु का । समाधि और प्रजा गुण-दोष बानते हैं। छः प्रकार के चैत छः अवस्था प्रकार-विशेष हैं। इन प्रकार-विशेषों का भेद सर्व चतु- व्यक्य बताते हैं । कुछ सर्व चित्त स्वभाव के साथ पाए जाते हैं, कुछ सर्व भूमियों में, कुछ सर्व सब समय पाए जाते हैं, कुछ सर्व एक साथ होते हैं। सर्वश्रा चैत्तों में चारों सर्व पाए जाते हैं। वे कुयल, अकुशल, अव्याकृत चित्त से संप्रयुक्त होते है। वे प्रत्येक भूमि में पाए जाते हैं। वे सदा रहते हैं। बब एक होता है, तो दूसरे होते हैं। प्रतिनियत विषय में पहले दो सर्व होते हैं। कुशल में एक सर्व होता है (वे सकल भूमि में पाए जाते है, किट में कोई सर्व नहीं होता है। यह लवण पालिक