पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४५९

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पंचदश अध्याय ज्ञानों का क्षय-शान, अनुसाद-ज्ञान | स्वभावतः संवृति-ज्ञान है, क्योंकि यह परमार्थ-जान नहीं है। प्रतिपक्षतः धर्म और अन्वय-शान है । पहला कामधातु का प्रतिपक्ष है, दूसरा ऊर्ध्व धातुओं का प्रतिपक्ष है। आकारत दुःख-ज्ञान और समुदय-ज्ञान हैं। इन श्रालंबन एक ही ( पंचोपगदान-स्कन्ध ) है, किन्तु आकार भिन्न हैं | श्राकार गोचरतः निरोध- शान और मार्ग-शान हैं। यह हो ज्ञान प्राकार और प्रालंबनवश व्यवस्थित होते हैं। इनके श्राकार और प्रालंबन दोनो भिन्न हैं। प्रयोगतः परचित्त-जान है। कृतकृत्यतः क्षय-ज्ञान है। कृतकृत्य के सन्तान में यह जान पहले उत्पन्न होता है, हेतु विस्तरतः अनुत्पाद-ज्ञान है, क्योंकि सब अनासव-ज्ञान जो क्षय-ज्ञान में संग्रहीत हैं, इसके हेतु है । ज्ञानमय गुणों में पहले बुद्ध के अाणिक धर्मों का निर्देश है। ये बुद्ध के विशेष धर्म हैं । दूसरे अर्हत् होकर भी उनकी प्राप्ति नहीं करते। ये अट्ठारह हैं:-~-दश बल, चार वैशारद्य, तीन स्मृत्युपस्थान और महाकरुणा । बुद्ध के अन्य धर्म शैक्ष या पृथग्जन को सामान्य अरणा, प्रणिधि-ज्ञान, प्रति-संवित्, अभिज्ञा अादि हैं।