पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४६०

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षोडश अध्याय सौत्रान्तिक नय सौत्रासिक पाया पर विचार सौत्रान्तिक वे हैं, जो केवल बुद्धवचन को, अर्थात् सूत्रान्तों को प्रमाण मानते हैं । ये कात्यायनीपुत्रादि शास्त्रकारों द्वारा रचित अभिधर्म के ग्रन्थों की प्रामाणिकता को स्वीका नहीं करते । ये अभिधर्मशास्त्र को बुद्धोक्त नहीं मानते। अभिधर्मकोश की व्याख्या में कहा है [पृ० ११, पक्कि ३०]-"ये सूत्रप्रामाणिका न तु शास्त्रप्रामाणिकाः", अर्थात् सौत्रान्तिक सूत्र को प्रमाण मानते हैं, शास्त्र को नहीं | आभिधार्मिक कहते हैं कि शास्ता बुद्ध ने धर्म- प्रविचय के लिए अभिधर्म का उपदेश किया है। वे प्रश्न करते हैं कि यदि शास्त्र प्रमाण नहीं है, तो त्रिपिटक की व्यवस्था कैसे होगी। सूत्र में त्रिपिटक का पाठ है । अभिधर्म का व्याख्यान भगवान् द्वारा प्रकाणं है-( स तु प्रकीर्ण उक्तो भगवता)। और जिस प्रकार स्थविर धर्मत्रात ने भिन्न भिन्न सूची में उक्त उदानों का वर्गीकरण उदानवगं में किया है, उसी प्रकार स्थविर कात्यायनापुत्रादि ने गनप्रस्थानादि शास्त्रों में भगवान् द्वारा उपदिष्ट अभिधर्म को एकस्य किया है। सौत्रान्तिको सूत्रनिकायाचार्य भी कहते है [ अभिधर्मकोश, २२२२६ ] | इस वाद के प्रतिष्ठापक तक्षशिला के कुमारलात कहे जाते हैं। तथा इसके अन्य प्रसिद्ध श्राचार्य भदन्त, राम, श्रीलात, वसुवर्मा श्रादि हैं । भदन्त का उल्लेख विभाषा में है। यह भदन्त कौन हैं, इस संबन्ध में मतभद पाया जाता है। भगविशेष का कहना है कि यह स्थविर धर्मत्रात है, किन्तु अभिधर्मकोश की व्याख्या में इस मत का एडन किया गया है। व्याख्याकार यशोमित्र कहते हैं कि भदन्त एक स्थविर का नाम है, जो सौत्रान्तिक हैं। व्याख्याकार का कहना है कि विभाषा के अनुसार भदन्त सौत्रान्तिक-दर्शनावलम्बी हैं, जब कि धर्मधात अतीत-अनागत के अस्तित्व को मानते हैं, और सर्वास्तिवाद के चार मतों में से 'भावान्ययात्व' के बाद को स्वीकार करते हैं । पुनः विभाषा में भदन्त धमत्रात अपने नाम से उल्लिखित हैं [व्याख्या, पृ. ४४, पछि १५-२२] । व्याख्या [पृ० २३२, पंक्ति २८४, पृ. ६७३, पक्कि १०, पृ. ६४, पति ६ ] में बार-बार भदन्त को सौत्रान्तिक बताया गया है। विभाषा में कुमारलात और श्रीलात का कोई उल्लेख नहीं है । ताकाकूस का कहना है कि विभाषा में सौत्रान्तिको का उल्लेख केवल एक बार पाया है। विभाषा दार्शन्तिकों से अवश्य परिचित है। विभाषा के अनुसार इनके प्रायः वही सिद्धान्त है, जो अभिवर्मकोरा के अनुसार सौत्रान्तिकों के हैं। अभि-