पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५१६

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४२ बौदस पाच धर्मबह की परीक्षा ब्राह्मणों के प्रात्मवाद का निराकरण करके शुभान-च्चांग बहु-पदार्थवादी सांख्य- वैशेषिक तथा हीनयान का खंडन करते हैं। यह मतवाद धर्मों की सत्ता मानने है (धर्मराह ) समान-वांग कहते है कि युक्तिः धर्मों का अस्तित्व नहीं है। चित्तव्यतिरेकी धर्मों की द्रव्यतः उपलब्धि नहीं होती। साल परीक्षा-पहले वह सांख्य मतवाद का विचार करते हैं । सांख्य के अनुसार पुरुष से पृथक् २३ तत्त्व ( या पदार्थ )-महत्-अहंकारादि हैं। पुरुष चैतन्यस्वरूप है। वह इनका उपभोग करता है। यह धर्म त्रिगुणात्मक हैं, तथापि यह तस्त्र हैं, व्यावहारिक ( कल्पित) नहीं है । अत: इनका प्रत्यक्ष होता है। शुश्रान-व्वांग उत्तर देते हैं कि । धर्म अनेकात्मक (गुणत्रय के समुदाय ) हैं, तब वह दन्यसत् नहीं है, किन्तु सेना और वन के तुल्य प्राप्ति मात्र है । ये तत्त्व विकृति हैं; अतः नित्य नहीं है । पुनः इन तीन वस्तुओं के ( तीन गुणों के ) अनेक कारित्र हैं। अतः इनके स्वभाव और लक्षण भिन्न हैं। तब यह समुदाय के रूप में एक तत्व कैसे हैं ? वैशेषिक परीक्षा-वैशेषिक परीक्षा का विचार करते हुए शुभान-च्यांग कहते हैं कि इसके अनुसार द्रव्य, गुण, कर्मादि पदार्थ द्रव्यसत्-स्वभाव है, और प्रत्यक्षगम्य हैं । इस वाद में पदार्थ या तो नित्य और अविपरिणामी है, अथवा अनित्य हैं । परमाणु-द्रव्य नित्य है, और परमाणु-संघात अनित्य है। एमान-वांग कहते कि यह विचित्र है कि एक अोर परमाणु नित्य है, और दूसरी ओर उनमें परमाणु-संघात के उत्पादन का सामथ्र्य भी है। यदि परमाणु त्रसरेणु आदि फल का उत्पादन करते हैं, तो फल के सदृश वह नित्य नहीं है क्योंकि वह कारित्र से समन्वागत है; और यदि वह फलोत्पादन नहीं करते, तो विज्ञान से व्यतिरिक शशगवत् उनका कोई द्रव्यसत्- स्वभाव नहीं है। यदि अनित्य पदार्थ (परमाणु-संघात) सावरण है, तो वह परिमाण वाले हैं; अतः वह सेना और वन से समान विभवनीय है, अत: वह द्रन्यसत्-स्वभाव नहीं है। यदि वह सावरण नहीं है, तो चित्त-चैत से व्यतिरिक्त उनका कोई द्रव्यसत्-स्वभाव नहीं है । जो परमाणु के लिए सत्य है, वह समुदाय संघात के लिए भी सत्य है । अतः वैशेषिकों के विविध द्रव्य प्रशसिमात्र हैं। गुणों का विज्ञान से पृथक् स्वभाव नहीं है। पृथ्वी-जल-तेज-वायु सावरण पदार्थों में संग्रहीत नहीं है, क्योंकि वह इनके खक्सटस्व' 'उदीरणत्व गुण के समान कायेन्द्रिय से स्पृष्ट होते है। इसके विपरीत चार पूर्वोक गुण अनावरण पदार्थों में संग्रहात नहीं है, क्योंकि पृथ्वी-जल-तेज- वायु के समान वह कायेन्द्रिय स्मुष्ट होते हैं। अत: यह सिद्ध होता है कि खस्खटत्वादि गुणों से व्यतिरिक पृथ्वी-बल-तेब-वायु का द्रव्यम-खमाव नहीं है।